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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ऐतिहासिक दृष्टि श्री धर्मानन्द कौशाम्बी का निश्चित मत है कि तत्कालीन सातों धर्माचार्यों में बद्ध सबसे छोटे थे । प्रारम्भ में उनका संघ भी सबसे छोटा था।' कौशाम्बी जी ने कालचक्र की बात को यह कह कर गौरण कर दिया है कि बुद्ध की जन्म तिथि में कुछ कम या अधिक अन्तर पड़ जाता है तो भी उससे उनके जीवन-चरित्र में किसी प्रकार का गौणत्व नहीं पा सकता। इसी प्रकार डॉ० हर्नले ने अपने "हेस्टिगाका एन्साइक्लोपीडिया आफ रिलीजन एण्ड इथिक्स" ग्रन्थ में भी इसकी चर्चा की है। उनके मतानुसार बुद्ध निर्वाण महावीर से ५ वर्ष बाद होता है । तदनुसार वुद्ध का जन्म महावीर से ३ वर्ष पूर्व होता है। मूनि कल्याण विजयजी के अनुसार भगवान महावीर से बद्ध १४ वर्ष ५ मास, १५ दिन पूर्व निर्वाण प्राप्त कर चुके थे, यानी भगवान महावीर से बुद्ध आयु में लगभग २२ बर्ष बड़े थे । बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ५४२ (मई) और महावीर का निर्वाण ई० पू० ५२८ (नवम्बर) ३ होता है। भगवान् महावीर का निर्वाण उन्होंने ई० पू० ५२७ माना है, जो परम्परा-सम्मत भी है और प्रमाण-सम्मत भी। श्री विजयेन्द्र सूरि द्वारा लिखित 'तीर्थकर महावीर' में भी विविध प्रमाणों के साथ भगवान महावीर का निर्वाणकाल ई० पू० ५२७ ही प्रमाणित किया गया है। भगवान महावीर के निर्वाणकाल का विचार जिन प्राधारों पर किया गया है, उन सब में साक्षात् व स्पष्ट प्रमाण बौद्ध पिटकों का है । जिन प्रकरणों में निर्वाण की चर्चा है वे क्रमश: मज्झिमनिकाय-सामगामसुत्त, दीर्घनिकायपासादिक सूत्त और दीर्घनिकाय-संगीति पर्याय सूत्त हैं । तीनों प्रकरणों की आत्मा एक है, पर उनके ऊपर का ढाँचा निराला है । इनमें बुद्ध ने प्रानन्द और चुन्द से भगवान महावीर के निर्वाण की बात कही है । कुछ लेखकों ने माना है कि इन प्रकरणों में विरोधाभास है । डॉ० जेकोबी ने उक्त प्रकरणों को इसलिए भी अप्रमाणित माना है कि इनमें से कोई समूल्लेख महापरिनिव्वाण सुत्त में नहीं है जिससे कि बुद्ध के अन्तिम जीवन प्रसंगों का ब्योरा मिलता है । जहाँ तक बुद्ध से भगवान महावीर के पूर्व निर्वाण का प्रश्न है, हमें इन प्रकरणों की १ भगवान् बुद्ध, पृ० ३३-१५५ २ भगवान् बुद्ध-भूमिका, पृ० १२ ३ ईस्वी पूर्व ५२८ के नवम्बर महीने में और ई. पू. ५२७ में केवल २ महीने का ही अन्तर है । अत: महावीर निर्वाण का काल सामान्यतः ई. पू. ५२७ का ही लिखा जाता है । ४ श्रमण वर्ष १३, अंक ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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