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________________ से निर्वाणकाल भगवान् महावीर ७६९ डॉ० के० पी० जायसवाल ने भी महावीर निर्वाण को बद्ध से पूर्व माना है । इनका कहना है कि बौद्धागमों में वरिणत महावीर के निर्वाण प्रसंग ऐतिहासिक तथ्यों के निर्धारण में किसी प्रकार उपेक्षा के योग्य नहीं हैं। सामगाम सुत्त में बुद्ध महावीर-निर्वाण के समाचार सुनते हैं और प्रचलित धारणाओं के अनुसार इसके २ वर्ष बाद वे स्वयं निर्वाण प्राप्त करते हैं।' (बौद्धों की दक्षिणी परम्परा के अनुसार महावीर का निर्वाण ई० पू० ५४६ में होता है और बुद्ध निर्वाण ई० पू० ५४४ में ।) डॉ० जायसवाल ने महावीर निर्वाण सम्बन्धी बौद्ध उल्लेखों की अपेक्षा न करने की जो बात कही है वह ठीक है, पर सामगाम सुत्त के आधार पर बुद्ध से २ वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण मानना और महावीर के ४७० वर्ष बाद विक्रमादित्य की मान्यता में १८ वर्ष जोड़कर महावीर और विक्रम के मध्यकाल की अवधि निश्चित करना पुष्ट प्रमारणों पर आधारित नहीं है। उन्होंने सरस्वतीगच्छ की पट्टावली के अनुसार वीर निर्वाण और विक्रम-जन्म के बीच का अन्तर ४७० वर्ष माना है और फिर १८वें वर्ष में विक्रम के राज्यासीन होने पर संवत् का प्रचलन हुआ, इस दृष्टि से वीर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद विक्रम संवत्सर मानने की बात को भूल कहा है । किन्तु इतिहासकारों का कथन है कि यह मान्यता किसी भी प्रामाणिक परम्परा पर आधारित नहीं है। प्राचार्य मेरुतुग ने वीर निर्वाण और विक्रमादित्य के बीच ४७० वर्ष का अन्तर माना है। वह अन्तर विक्रम के जन्मकाल से नहीं अपितु शक राज्य की समाप्ति और विक्रम की विजय से सम्बन्धित है। डॉ० राधा कुमुद मुकर्जी ने भी अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ (हिन्दू सभ्यता) में डॉ० जायसवाल की तरह भगवान् महावीर की ज्येष्ठता और पूर्व निर्वाणप्राप्ति का युक्तिपूर्वक समर्थन किया है। पुरातत्व गवेषक मुनि जिन विजयजी ने भी डॉ० जायसवाल के मतानुसार भगवान् महावीर की ज्येष्ठता स्वीकार की है। १ जर्नल आफ बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, १-१०३ । २ विक्कम रज्जारंभा परमो सिरि वीर निव्वुइ भणिया । सुन्न मुणि वेय जुत्तो विक्कम कालाउ जिण कालो ॥ विचार श्रेणी पृ. ३-४ The suggestion can hardly be said to rest on any reliable tradition. Merulunga places the death of the last Jian or Teerthankara 470 years before the end of Saka Rule and the victory and not birth of the traditional Vikrama (An Advanced History of India by R. C. Majumdar., H. C. Roy Chaudhari & K. K. Dutta, Page 85.] ४ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना-भूमिका पृ० १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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