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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ऐतिहासिक दृष्टि है । इस विषय में सर्वाधिक पुष्ट धारणाएँ हैं कि भगवान महावीर जिस दिन निर्वाण को प्राप्त होते हैं उसी दिन उज्जैन में पालक राजा गद्दी पर बैठता है। उसका राज्य ६० वर्ष तक चला, उसके बाद १५५ (एक सौ पचपन) वर्ष तक नन्दों का राज्य और तत्पश्चात् मौर्य राज्य का प्रारम्भ' होता है, अर्थात् महावीर के निर्वाण के २१५ वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य गद्दी पर बैठता है। यह प्रकरण 'तित्थोगाली पइन्नय' का है जो परिशिष्ट पर्व से बहुत प्राचीन माना जाता है। बाबू श्री पूर्णचन्द्र नाहर तथा श्री कृष्णचन्द्र घोष के अनुसार हेमचन्द्राचार्य की गणना में असावधानी से पालक राज्य के ६० वर्ष छूट गये हैं।
सम्भव है, जिस श्लोक (३३६) के आधार पर डॉ. जैकोबी ने महावीर निर्वाण के समय को निश्चित किया है उसमें भी वैसी ही असावधानी रही हो। स्वयं हेमचन्द्राचार्य ने अपने समकालीन राजा कुमारपाल का काल बताते समय महावीर निर्वाण का जो समय माना है, वह ई०पू० ५२७ का ही है, न कि ई० पू० ४७७ का । हेमचन्द्राचार्य लिखते हैं कि जब भगवान महावीर के निर्वाण से १६६६ वर्ष बीतेंगे तब चोलुक्य कुल में चन्द्रमा के समान राजा कुमारपाल होगा।
अब यह निर्विवाद रूप से माना जाता है कि राजा कुमारपाल ई० सन् ११४३ में हुआ । हेमचन्द्राचार्य के कथन से यह काल महावीर के निर्वाण से १६६६ वर्ष का है। इस प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने भी महावीर निर्वाणकाल १६६६-११४२ ई० पू० ५२७ ही माना है।
डॉ० जैकोबी की धारणा के बाद ३२ वर्ष के इस सुदीर्घ काल में इतिहास ने बहुत कुछ नई उपलब्धियां की हैं, इसलिए भी डॉ० जैकोबी के निर्णय को अन्तिम रूप से मान लेना यथार्थ नहीं है। १ ज रयरिंग सिद्धिगमो प्ररहा तित्थंकरो महावीरो। तं रयरिणमवन्तिए, अभिसित्तो पालो राया । पालग रणो सट्ठी, पण पण सयं वियाणि दाणम् । मुरियाण सट्ठिसयं, तीसा पुण पूसमित्ताणम् ॥ [तित्थोगाली पइन्नय ६२०-२१] ? Hemchandra must have omitted by oversight to count the period of 60 years of King Palaka after Mahaveera,
[Epitome of Jainism Appendix A, P. IV] ३ अस्मिनिर्वाणतो वर्षशातन्यमय षोडश । नव षष्टिश्च यास्यन्ति, यदा तत्र पुरे तदा । कुमारपाल भूपालो, चौलुक्यकुलचन्द्रमाः । भविष्यति महाबाहुः, प्रचण्डाखण्डशासनः ।।
[त्रिषष्टि शलाका पु. प., पर्व १०, सर्ग १२, श्लो० ४५-४६]
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