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________________ ऐतिहासिक दृष्टि से निर्वाणकाल] भगवान् महावीर बौद्ध ग्रन्थ दीर्घनिकाय अट्ठकहा में वस्सकार द्वारा छलछप से बज्जियों में फूट डाल कर कूणिक द्वारा वैशाली पर माक्रमण करने, वज्जियों की पराजय व करिणक की विजय का संक्षेप में पूरा विवरण उल्लिखित है। बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि एकता के सत्र में बंधे हए वज्जियों में फट, द्वेष और भेद उत्पन्न करने के लक्ष्य रख कर वस्सकार बड़े नाटकीय ढंग से वैशाली गया । वह वज्जी गणतन्त्र में अमात्य का पद प्राप्त करने में सफल हमा । वस्सकार ३ वर्ष तक वैशाली में रहा और अपनी कटनीतिक चालों ने वज्जियों में ईा-विद्वेष फैलाकर वज्जियों की प्रजेय शक्ति को खोखला और निर्बल बना दिया। अन्ततोगत्वा, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, वस्सकार के संकेत पा कणिक ने वैशाली पर प्रबल आक्रमण किया और वज्जियों को परास्त कर दिया। केवल 'रथमूसल' और 'महाशिलाकंटक' संग्राम का परिचय बौद्ध साहित्य में नहीं है। वस्तुस्थिति यह है कि राजा कणिक भगवान् महावीर का परम भक्त था। उसने अपने राजपुरुषों द्वारा भगवान् महावीर की दैनिक चर्या के सम्बन्ध में प्रतिदिन की सूचना प्राप्त करने की व्यवस्था कर रखी थी। भगवान महावीर के बाद सुधर्मा स्वामी की परिषद् में भी वह सभक्ति उपस्थित हुमा ।' प्रतः जैनागमों में उसका अधिक विवरण होना और बौद्ध साहित्य में संक्षिप्त निर्देश होना स्वाभाविक है। डॉ० जैकोबी ने महावीर के पूर्व निर्वाण सम्बन्धी बौद्ध शास्त्रों में मिलने वाले तीन प्रकरणों को अयथार्थ प्रमाणित करने का प्रयत्न किया है। किन्तु प्राप्त सामग्री के अनुसार वह ठीक नहीं है । बौद्ध साहित्य में इन तीन प्रकरणों के अतिरिक्त कहीं भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता जो महावीर-निर्वाण से पूर्व बुद्ध-निर्वाण को प्रमाणित करता हो, अपितु ऐसे अनेक प्रसंग उपलब्ध होते हैं जो बुद्ध का छोटा होना और महावीर का ज्येष्ठ होना प्रमाणित करते हैं । अत: डॉ० जैकोबी का वह दूसरा निर्णय प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता। डॉ० जैकोबी ने अपने दूसरे मन्तव्य में महावीर का निर्वाण ४७७ ई. पू. पौर बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ४८४ माना है। पर उन्होंने उस सारे लेख में यह बताने का यत्न नहीं किया कि यही तिथियां मानी जायें, ऐसी अनिवार्यता क्यों पैदा हई ? उन्होंने बताया है कि जैनों की सर्वमान्य परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक महावीर के निर्वाण के २१५ वर्ष बाद हुआ था, परन्तु प्राचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार यह राज्याभिषेक महावीर के निर्वाण के १५५ वर्ष पश्चात् हुप्रा । इतिहास के विद्वानों ने इसे श्री हेमचन्द्राचार्य की भूल माना १ परिशिष्ट पर्व, सर्ग ४, श्लो० १५-५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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