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________________ ७६६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ऐति० दृष्टि से निर्वाणकाल भगवान् महावीर और बुद्ध के निर्वाण प्रसंग पर डॉ० जैकोबी ने दो स्थानों पर चर्चा की है पर वे दोनों चर्चाएँ परस्पर विरोधी हैं। पहली चर्चा में डॉ० जैकोबी ने भगवान् महावीर का निर्वाणकाल ई. पू.. ५२६ माना है । इसके प्रमाण में उन्होंने लिखा है- "जैनों की यह सर्वसम्मत मान्यता है कि जन सूत्रों की वाचना वल्लभी में देवद्धि क्षमाश्रमण के तत्वावधान में हई । इस घटना का समय वीर निर्वाण से १८० अथवा ६६३ वर्ष पश्चात का है अर्थात् ई. सन् ४५४ या ४६७ का है, जैसा कि कल्पसूत्र की गाथा १४८ में उल्लिखित है।" यहाँ पर डॉ० जैकोबी ने वीर-निर्वाणकाल ई० पू० ५२६ माना है, क्योंकि ५२६ में.४५४ जोड़ने पर ६८० और ४६७ जोड़ने पर ६६३ वर्ष होते हैं। इसके पश्चात् डॉ० जैकोबी ने दूसरे खण्ड की भूमिका में भगवान महावीर और बुद्ध के निर्वाणकाल के सम्बन्ध में विचार करते हुए भगवान महावीर के निर्वाणकाल पर पुनः दूसरी बार चर्चा की है। उस चर्चा के निष्कर्ष के रूप में उन्होंने अपनी पहली मान्यता के विपरीत अपना यह अभिमत प्रकट किया है कि बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ४८४ में हुआ था तथा महावीर का निर्वाण ई० पू० ४७७ में हुआ था। डॉ० जैकोबी ने अपने इस परिवर्तित निर्णय के औचित्य के सम्बन्ध में कोई भी प्रमाण अथवा आधार प्रस्तुत नहीं किया । उनके द्वारा बुद्ध को बड़ा और महावीर को छोटा मानने में प्रमुख तर्क यह रखा गया है कि कणिक का चेटक के साथ जो यद्ध हया उसका जितना विवरण बौद्ध शास्त्रों में मिलता है, उससे अधिक विस्तृत विवरण जैन आगमों में मिलता है । जहाँ बौद्ध शास्त्रों में अजातशत्रु के अमात्य वस्सकार द्वारा बुद्ध के समक्ष वज्जियों पर विजय प्राप्ति के लिए केवल योजना प्रस्तुत करने का उल्लेख है, वहाँ जैन आगमों में करिणक और चेटक के बीच हुए 'महाशिलाकंटक संग्राम', 'रथमूसल संग्राम' और वैशाली के प्राकार-भंग तक स्पष्ट विवरण मिलता है । इस तर्क के आधार पर डॉ० जैकोबी ने कहा है- "इससे यह प्रमाणित होता है कि महावीर बद्ध के बाद कितने ही वर्षों तक जीवित रहे थे।" वास्तव में बौद्ध शास्त्रों में सम्यक् पर्यवेक्षण से डॉ. जेकोबी का यह तर्क बिल्कुल निर्बल और नितान्त पंगु प्रतीत होगा, क्योंकि वस्सकार की कूटनीतिक चाल के माध्यम से वज्जियों पर कणिक की विजय का जैनागमों में दिये गये विवरण से भिन्न प्रकार का विवरण बौद्ध शास्त्रों में उपलब्ध होता है। १ एस. बी. ई. वोल्यूम २२, इन्द्रोडक्टरी, पृ. ३७ । २ 'श्रमरण' वर्ष १३, अंक ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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