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राजगृही के प्रांगण में प्रभय कुमार ] भगवान् महावीर
चंडप्रद्योत ने चौदह राजानों के साथ राजगृह पर आक्रमण किया । अभय ने ही उस समय राज्य का रक्षरण किया था । उसने जहाँ शत्रु का शिविर लगना था, वहाँ पहले ही स्वर्ण मुद्राएं गड़वा दीं। जब चण्डप्रद्योत ने आकर राजगृह को घेरा तो अभय ने उसे सूचना करवाई - "मैं श्रापका हितैषी होकर एक सूचना कर रहा हूं कि आपके साथी राजा श्रेणिक से मिल गये हैं । अतः वे आपको पकड़ कर श्रेणिक को संभलाने वाले हैं। श्रेणिक ने उनको बहुत धनराशि दी है । विश्वास न हो तो आप अपने शिविर की भूमि खुदवा कर देख लें ।"
austria ने भूमि खुदवाई तो उसे उस स्थान पर गड़ी हुई स्वर्णमुद्राएं मिलीं । भय खाकर वह ज्यों का त्यों ही उज्जयिनी लौट गया । १
राजगृही में एक बार एक द्रुमक लकड़हारा सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षित हुआ। जब वह दीक्षा के लिए नगरी में गया तो लोग उसका उपहास करते हुए बोले - "ये आये हैं बड़े त्यागी पुरुष, कितना बड़ा वैभव छोड़ा है इन्होंने ? " लोगों के इस उपहास वचन से नवदीक्षित मुनि व्यथित हुए । उन्होंने सुधर्मा स्वामी से आकर कहा । द्रुमक मुनि की खेद- निवृत्ति के लिए सुधर्मा स्वामी ने भी अगले ही दिन वहाँ से विहार करने का सोच लिया ।
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अभयकुमार को जब इस बात का पता चला तो उसने प्रार्य सुधर्मा को ठहरने के लिए निवेदन किया तथा नगर में आकर एक-एक कोटि स्वर्ण मुद्राओं की तीन राशियां लगवाईं और नगर के लोगों को आमंत्रित किया । उसने नगर में घोषणा करवाई कि जो जीवन भर के लिए स्त्री, अग्नि और पानी का परित्याग करे, वह इन तीन कोटि स्वर्ण मुद्राओं को ले सकता है ।
स्त्री, अग्नि और पानी छोड़ने के भय से कोई स्वर्ण लेने को नहीं आया, तब अभयकुमार ने कहा - "देखो वह द्रुमक मुनि कितने बड़े त्यागी हैं । उन्होने जीवन भर के लिए स्त्री, अग्नि और सचित्त जल का परित्याग कर दिया है ।"
भय की इस बुद्धिमत्ता से द्रुमक मुनि के प्रति लोगों की व्यंग्य-चर्चा समाप्त हो गई । अभयकुमार की धर्मसेवा के ऐसे अनेकों उदाहरण जैन साहित्य में भरे पड़े हैं ।
भगवान् महावीर जब राजगृह पधारे तो अभयकुमार भी वन्दन के लिए उद्यान में प्राया । देशना के अन्त में अभय ने भगवान् से सविनय पूछा"भगवन् ! आपके शासन में अन्तिम मोक्षगामी राजा कौन होगा ?"
११, श्लो० १८४ ।
१ (क) त्रिषष्टि शलाका पुरुष, पृ० १० (ख) श्रावश्यक चूरिंग उत्तरार्धं ।
२ धर्मरत्न प्रकरण --" अभयकुमार कथा ।"
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