SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 826
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [राजगृही के प्रांगण से प्रभयकुमार "मुझे एक बार आपकी वाणी सुनने का लाभ मिला था और उस एक बार के ही उपदेश ने मेरे जीवन को संकट से बचा लिया है। आज तो हृदय खोलकर मैं आपकी अमृतमयी वाणी के श्रवण का लाभ उठाऊंगा।" इस तरह मन में दढ निश्चय कर उसने प्रभु का उपदेश सुना। उपदेशश्रवण के प्रभाव से उसके मन में वैराग्यभाव उदित हो गया। उसको अपने पूर्वकृत्यों पर अत्यन्त पश्चात्ताप तथा ग्लानि हुई। उसने हाथ जोड़कर प्रभु से निवेदन किया-"भगवन् ! क्या एक चोर और अत्याचारी भी मुनि-धर्म पाने का अधिकारी हो सकता है ? मेरा पूर्व-जीवन कुकृत्यों से काला बना हुआ है । क्या उसको सफाई या निर्मलता के लिए मैं आपकी पुनीत सेवा में स्थान पा सकता हूं?" उसके इस निश्छल वचन को सुनकर भगवान् ने कहा-"रोहिणेय ! अन्त:करण के पश्चात्ताप से पाप की कालिमा धुल जाती है। अतः अब तू श्रमणपद पाने का अधिकारी बन गया है। तेरे मन के वे सारे कलुष, जो अब तक के तुम्हारे कुकृत्यों से वंचित हुए थे, प्रात्मालोचना की भट्टी में जलकर राख हो गये हैं।" प्रभु की वाणी से प्रख्यात चोर रोहिणेय देखते ही देखते साधु बन गया और अपने सत्कृत्यों और तपश्चर्या से बहुत आगे बढ़ गया । ठीक ही है, पारस का संयोग लोहे को भी सोना बना देता है। उसी प्रकार वीतराग प्रभु की वाणी पापी को भी धर्मात्मा बना देती है। निर्मल अन्तःकरण या सात्त्विक प्रकृति वाला व्यक्ति यदि प्रव्रज्या ग्रहण करे, व्रत-विधान का पालन करे, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है । किन्तु जब एक जन्मजात कुख्यात चोर प्रभु के प्रताप और उपदेश के प्रभाव से पूज्य पुरुष बन जाय तो निश्चित रूप से यह एक बड़ो और असाधारण बात है। राजगृही के प्रांगण से अभयकुमार राजगृही के महाराज श्रेणिक और उनके परिवार की भगवान् महावीर के प्रति भक्ति उल्लेखनीय रही है। उसमें राज-मंत्री अभयकुमार का बड़ा योगदान रहा। भंभसार-श्रेणिक की नन्दा रानी से "अभय" का जन्म हुआ।' नन्दा "वेन्नातट" के "धनावह" सेठ की पुत्री थी। अभयकुमार श्रेणिक-भंभसार का परममान्य मंत्री भी था। उसने कई बार राजनैतिक संकटों से श्रेणिक की रक्षा की। एक बार उज्जयिनी के राजा १ सेणियस्स रन्नो पुत्ते नंदा ए देवीए प्रत्तए प्रभए नाम कुमारी होत्था । [निरयावलिका, सू० २३] २ भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति, पृ० ३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy