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महाराजा उदायन]
भगवान् महावीर
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महाराजा उदायन भगवान महावीर के उपासक, परमभक्त अनेकानेक शक्तिशाली छत्रपतियों को गणना में श्रेणिक, कणिक और चेटक की तरह महाराजा उदायन भी अग्रगण्य नरेश माने गये हैं।
___महाराजा उदायन सिन्धु-सौवीर राज्य के शक्तिशाली एवं लोकप्रिय नरेश थे । आपके राज्य में सोलह बड़े-बड़े जनपद एवं ३६३ सुन्दर नगर और इतनी ही बड़ी-बड़ी खदानें थीं। दस छत्र-मुकुटधारी महीपाल और अनेक छोटे-मोटे अवनीपति एवं सार्थवाह आदि महाराज उदायन की सेवा में निरन्तर निरत रहते थे। सिन्धु-सौवीर राज्य की राजधानी वीतिभय नगर था, जो उस समय के नगरों में बड़ा विशाल, सुन्दर और सब प्रकार की समृद्धि से सम्पन्न था । महाराज उदायन की महारानी का नाम प्रभावती और पुत्र का नाम अभीच कुमार था । केशी कुमार नामक इनका भानजा भी उनके पास ही रहता था। उदायन का उस पर बड़ा स्नेह था।'
महाराजा उदायन एक महान शक्तिशाली राज्य के एकछत्र अधिपति होते हुए भी बड़े धर्मानुरागी और भगवद्भक्त थे । वे भगवान् महावीर के बारह व्रतधारी श्रावक थे। उनके न्याय-नीतिपूर्ण शासन में प्रजा पूर्णरूपेण सुखी थी। महाराज उदायन की भगवान् महावीर के वचनों पर बड़ी श्रद्धा थी।
एक समय महाराजा उदायन अपनी पौषधशाला में पोषध किये हुए जद रात्रि के समय धर्मचिंतन कर रहे थे उस समय उनके मन मे भगवान महावीर के प्रति उत्कृष्ट भक्ति के उद्रेक से इस प्रकार की भावना उत्पन्न हुई-"धन्य है वह नगर, जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान हैं। अहोभाग्य है उन नरेशों और भव्य नागरिकों का जो भगवान के दर्शनों से अपना जीवन सफल करते और उनके पतितपावन चरणारविन्दों में सविधि वन्दन करते हैं, उनकी मनसा, वाचा, कर्मणा सेवा करके कृतकृत्य हो रहे हैं तथा भगवान् की भवभयहारिणी सकल कल्मष विनाशिनी अमृतमयी अमोघ वाणी सुनकर भवसागर से पार हो रहे हैं । मेरे लिए वह सुनहरा दिन कब उदित होगा जब मैं अपने इन नेत्रों से जगद्गुरु श्रमण भगवान महावीर के दर्शन करूंगा, उन्हें सविधि वन्दन करूंगा, पर्युपासना-सेवा करूंगा और उनकी पीयूषवर्षिणी वाणी सुनकर अपने कर्णरन्ध्रों को पवित्र करूंगा।
महाराज उदायन की इस प्रकार की उत्कृष्ट अभिलाषा त्रिकालदर्शी सर्वज्ञ प्रभु से कैसे छिपी रह सकती थी ? प्रभु दूसरे ही दिन चम्पा नगरी के पूर्ण
१ भववती शतक, श० १२, उ०२।
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