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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [रथमूसल संग्राम स्तूप का नामोनिशां तक मिटा देने के लिये टूट पड़े। कुछ ही क्षणों में स्तूप का चिह्न तक नहीं रहा।
कलवालक से इष्टसिद्धि का संकेत पा कणिक ने वैशाली पर प्रबल माक्रमण किया । उसे इस बार वैशाली का प्राकार भंग करने में सफलता प्राप्त
हो गई।
कूणिक ने अपनी सेना के साथ वैशाली में प्रवेश किया और बड़ी निर्दयतापूर्वक वैशाली के वैभवशाली भवनों की ईंट से ईंट बजा दी।
वैशाली भंग का समाचार सुनकर महाराज चेटक ने अनशनपूर्वक प्राणत्याग किया और वे देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुए।
उधर कणिक ने वैशाली नगर की उजाडी गई भूमि पर गधों से हल फिरवाये और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर सेना के साथ चम्पा की ओर लौट गया।
परम प्रामाणिक माने जाने वाले 'भगवती-सूत्र' और 'निरयावलिका' में दिये गये इस युद्ध के विवरणों से यह सिद्ध होता है कि वैशाली के उस युद्ध में माज के वैज्ञानिक युग के प्रक्षेपणास्त्रों और टैंकों से भी प्रति भीषण संहारकारक 'महाशिलाकंटक' और 'रथमसल' अस्त्रों का उपयोग किया गया। इनके सम्बन्ध में भगवती सूत्र के दो मूल पाठकों के विचारार्थ यहाँ दिये जा रहे हैं। गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा :
"से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चई महासिलाकंटए संगामे ?"
भगवान् महावीर ने गौतम द्वारा प्रश्न करने पर फरमाया-“गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे तत्थ आसे वा, हत्थी वा, जोहे वा, सारही वा तणेणवा, पत्तेण वा, कट्ठण वा, सक्कराए वा अभिहम्मइ सव्वे से जाणइ महासिलाए अहं अभिहए, से तेरणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चई महासिलाकटए संगामे ।"
[भगवती, श० ७, उ०६] इस एक दिन के महाशिलाकंटक युद्ध में मृतकों की संख्या के सम्बन्ध में गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने फरमाया-"गोयमा ! चउरासीई जणसयसाहस्सियाप्रो बहियारो।"
___ इसी प्रकार गौतम गणधर ने रथमूसल संग्राम के सम्बन्ध में प्रश्न किये"से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ रहमुसले संगामे ?"
उत्तर में भगवान महावीर ने फरमाया-"गोयमा ! रहमुसलेणं संगामे ___वट्टमाणे एगे रहे प्रणासए असारहिए, अणारोहए, समुसले, महयामहया
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