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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[रथमूसल संग्राम
कूणिक ने अपनी सेनाओं के साथ वैशाली के चारों ओर घेरा डाल दिया। जैन आगम और आगमेतर साहित्य से ऐसा आभास होता है कि करिणक ने काफी लम्बे समय तक वैशाली को घेरे रखा । रात्रि के समय में हल्ल और विहल्ल कुमार अपने अलौकिक सेचनक हाथी पर आरूढ़ हो नगर के बाहर निकल कर कणिक की सेना पर भीषण शस्त्रास्त्रों की वर्षा करते और कुणिक के सैनिकों का संहार करते । उस दिव्य हस्तिरत्न पर आरूढ़ हल्ल विहल्ल का कूरिणक के सैनिक बाल तक बाँका नहीं कर सके।
वैशाली के अभेद्य प्राकार को तोड़ने हेतु करिणक ने अनेक प्रकार के उपाय और प्रयास किये, पर उसे किंचित मात्र भी सफलता नहीं मिली। उधर प्रत्येक रात्रि को सेचनक हाथी पर सवार हो हल्ल विहल्ल द्वारा कृरिणक की सेना के संहार करने का क्रम चलता रहा जिसके कारण कणिक की सेना की बड़ी भारी क्षति हुई । कूणिक दिन प्रतिदिन हताश और चिन्तित रहने लगा।
अन्ततोगत्वा किसी अदृष्ट शक्ति से कुणिक को वैशाली के भंग करने का उपाय विदित हा कि चम्पा की मागधिका नाम की वारांगना यदि कूलवालक नामक तपस्वी श्रमण को अपने प्रेमपाश में फँसा कर ले आये तो वह कूलवालक श्रमण वैशाली का भंग करवा सकता है । कूणिक ने अनेक प्रलोभन देकर इस कार्य के लिए मागधिका को तैयार किया। चतुर गणिका मागधिका ने परम श्रद्धालु श्राविका का छद्म-वेश बना कर कूलवालक श्रमरण को अपने प्रेमपाश में बाँध लिया और श्रमरण धर्म से भ्रष्ट कर उसे मगधेश्वर कूणिक के पास प्रस्तुत किया । कूणिक अपनी चिर-अभिलषित पाशालता को फलवती होते देख बड़ा प्रसन्न हुआ और कूलवालक के वैशाली में प्रविष्ट होने की प्रतीक्षा करने लगा।
. इसी बीच हल्ल विहल्ल द्वारा प्रतिरात्रि की जा रही अपनी सैन्यशक्ति की क्षति के सम्बन्ध में कूरिणक ने अपने मन्त्रियों के साथ मंत्रणा की। मंत्रणा के निष्कर्ष स्वरूप सेचनक के आगमन की राह में एक खाई खोदकर खैर के जाज्ज्वल्यमान अंगारों से उसे भर दिया और उसे लचीली धातु के पत्रों से आच्छादित कर दिया।
रात्रि के समय शस्त्रास्त्रों से सन्नद्ध हो हल्ल और विहल्ल सेचनक हाथी पर आरूढ़ हो वैशाली से बाहर आने लगे तो सेचनक अपने विभंग-ज्ञान से उस खाई को अंगारों से भरी जान कर वहीं रुक गया। इस पर हल्ल विहल्ल ने कुपित हो सेचनक पर वाग्बाणों की बौछार करते हुए कहा-“कायर ! तू युद्ध से कतरा कर अड़ गया है। तेरे लिये हमने अपने नगर एवं परिजन को छोड़ा, देवोपम पूज्य नानाजी को घोर संकट में ढकेला, पर आज तू युद्ध से डर कर
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