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________________ रथमूसल संग्राम] भगवान् महावीर ७५१ कर वह टूक-टूक हो गया । दृढ़-प्रतिज्ञ चेटक ने उस दिन फिर कोई दूसरा बाण नहीं चलाया। जिस समय युद्ध उग्र रूप धारण कर रहा था उस समय कणिक ने वैशाली की सेनाओं पर 'रथमसल' अस्त्र का प्रयोग किया। प्रलय के दूत के समान दैत्याकार लोहसार का बना स्वचालित रथमसल यन्त्र बिना किसी वाहन, वाहक और आरोही के, अपनी प्रलयकालीन घनघोर मेघ घटानों के समान घर्राहट से धरती को कैंपाता हुमा विद्युतवेग से वैशाली की सेनाओं पर झपटा। उसमें लगे यमदण्ड के समान मूसल स्वतः ही अनवरत प्रहार करने लगे। उसकी गति इतनी तीव्र थी कि वह एक क्षण में चारों ओर सब जगह शत्रुओं का संहार करता हुआ दिखाई दे रहा था। तपस्वी १२ व्रतधारी श्रावक योद्धा नाग का पौत्र वरुण षष्टभक्त का पारण किये बिना ही अष्टम भक्त तप कर चेटक आदि के अनुरोध पर रथमूसल अस्त्र को विनष्ट करने की इच्छा लिये संग्राम में आगे बड़ा । करिणक के सेनापति ने उसे युद्ध के लिये ललकारा। वरुण ने कहा कि वह श्रावक होने के कारण किसी पर पहले प्रहार नहीं करता। इस पर कूणिक की सेना के सेनापति ने वरुण के मर्मस्थल पर तीर का तीक्ष्ण प्रहार किया। मर्माहत होते हुए भी वरुण ने एक ही शरप्रहार से उस सेनापति को मौत के घाट उतार दिया। अपनी मृत्यु सन्निकट जान कर वह युद्धभूमि से दूर चला गया और आलोचनाअनशनादिपूर्वक प्राण त्याग कर प्रथम स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। उधर तीव्रगति से चारों ओर घूमते हुए रथमसल यंत्र ने वैशाली की सेना को पीस डाला। यद्ध के मैदान में चारों ओर रुधिर और मांस का कीचड़ ही कीचड़ दृष्टिगोचर हो रहा था । रथमसल अस्त्र द्वारा किये गये प्रलयोपम भीषण नरसंहार व रुधिर, मांस और मज्जा के कर्दम के वीभत्स एवं हृदयद्रावक दृश्य को देखकर मल्लियों और लिच्छवियों के १८ गणराज्यों की सेनाओं के अवशिष्ट सैनिक भयभीत हो प्राण बचाकर अपने २ नगरों की ओर भाग गये। इस एक दिन के रथमूसल संग्राम में ६६ लाख सैनिकों का संहार हुआ। इस दिन के युद्ध में 'रथमूसल' अस्त्र का उपयोग किया गया, इसलिये इस दिन का युद्ध 'रथमूसल संग्राम' के नाम से विख्यात हुआ। ___ सब सैनिकों के मैदान छोड़कर भाग खड़े होने पर और कोई उपाय न देख महाराज चेटक ने भी बचे खुचे अपने योद्धानों के साथ वैशाली में प्रवेश किया और नगर के सब द्वार बन्द कर दिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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