________________
७५०
जैन धर्म का मौलिक इतिहास [महाशिला-कंटक युद्ध
__ महाशिला-कंटक युद्ध चमरेन्द्र के निर्देशानुसार कूणिक महाशिलाकंटक नामक महान संहारक अस्त्र (प्रक्षेपणास्त्र) को लेकर उद्वेलित सागर की तरह भीषण, विशाल चतुरंगिणी सेना के साथ रणांगण में उतरा। काशी कोशल के 8 मल्ली और लिच्छवी, इन १८ गणराज्यों की और अपनी दुर्दान्त सेना के साथ महाराज चेटक भी रणक्षेत्र में कूणिक की सेना से लोहा लेने आ डटे। दोनों सेनाओं में बड़ा लोमहर्षक युद्ध हुआ । कूणिक की सहायता के लिए शक्र और चमरेन्द्र भी उनके साथ युद्धस्थल में उपस्थित थे। देखते ही देखते युद्धभूमि दोनों पक्षों के योद्धाओं के रुण्ड मुण्डों से आच्छादित हो गयी। चेटक और १८ गणराज्यों की सेनाओं ने बड़ी वीरता के साथ डट कर कूणिक की सेना के साथ युद्ध किया।
चेटक ने अपने हाथी को आगे बढ़ाया, अपने धनुष पर शरसन्धान कर प्रत्यंचा को अपने कान तक खींचा और कृरिणक पर अपना अमोघ तीर चला दिया। पर इस बार वह तीर शक्र द्वारा प्रदत्त कणिक के वज्र कवच से टकरा कर टुकड़े-टुकड़े हो गया। अपने अमोघ बाण को मोघ हुआ देख कर भी सत्यसन्ध चेटक ने उस दिन दूसरा बारण नहीं चलाया ।
कणिक ने चमरेन्द्र द्वारा विकुर्वित 'महाशिला कंटक' अस्त्र का प्रयोग किया। इस यंत्र के माध्यम से जो तण, काष्ठ, पत्र, लोष्ठ अथवा बालुका-कण वैशाली की सेना पर फेंके जाते उनके प्रहार विस्तीर्ण शिलानों के प्रहारों से भी अति भयंकर होते। कुछ ही समय में वैशाली के लाखों योद्धा धेराशायी हो गये चेक की सेना में इन शिलोपम प्रहारों से भगदड़ मच गई । अठारहों मल्ली और लिच्छवी गणराजाओं की सेनाएं इस प्रलय से बचने के लिये रणक्षेत्र में पीठ दिखा कर भाग गई ।
__ इस एक दिन के महाशिलाकंटक संग्राम में ८४ लाख योद्धा मारे गये । 'महाशिलाकंटक' नामक नरसंहारक युद्धोपकरण का प्रयोग किये जाने के कारण इस दिन का युद्ध 'महाशिलाकंटक संग्राम' के नाम से विख्यात हुआ ।
रथमूसल संग्राम दूसरे दिन कणिक 'रथमूसल' नामक प्रलयंकर स्वचालित यंत्र लेकर अपनी सेनाओं के साथ रणक्षेत्र में पहुँचा ।
__ महाराज चेटक और उनके सहायक १८ गणराज्यों की सेनामों ने बड़ी देर तक कणिक की सेनाओं के साथ प्राणपण से युद्ध किया। चेटक ने भागे बढ़ कर कणिक पर एक बाण का प्रहार किया, पर चमरेन्द्र के प्रायस पट्ट से टकरा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org