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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[कूणिक द्वारा
बिना किसी प्रकार की नवीन उपलब्धि के ही युद्ध के प्रथम दिवस का अवसान होने जा रहा है यह देख कर कणिक के सेनापति काल ने कृतान्त की तरह क्रुद्ध हो महाराज चेटक की ओर अपना हाथी बढ़ाया और उन्हें युद्ध के लिये आमन्त्रित किया। विशाल भाल पर त्रिबली के साथ उपेक्षा की मुस्कान लिये चेटक ने भी गजवाहक को अपना गजराज कालकुमार की ओर बढ़ाने का आदेश दिया। दोनों योद्धाओं की आयु में आकाश-पाताल का सा अन्तर था । बुढ़ापे और यौवन की अद्भुत स्पर्धा पर क्षण भर के लिये दोनों ओर की सेनाओं की अपलक दृष्टि जम गई ।
मातामह का समादर करते हुए काल कुमार ने कहा- "देवार्य ! पहले आप अपने दौहित्र पर प्रहार कीजिये।"
घन-गम्भीर स्वर में चेटक ने कहा-"वत्स ! पहले तुम्हें ही प्रहार करना पड़ेगा क्योंकि चेटक की यह अटल प्रतिज्ञा सर्वविदित है कि वह प्रहर्ता पर ही प्रहार करता है।"
कालकूमार ने आकर्णान्त कोदण्ड की प्रत्यंचा तान कर चेटक के भाल को लक्ष्य बना अपनी पूरी शक्ति से सर छोड़ा। चेटक ने अद्भुत हस्तलाघव से सब को आश्चर्यचकित करते हुए अपने अर्द्ध चन्द्राकार फल वाले बाण से कालकुमार के तीर को अन्तराल मार्ग (बीच राह) में ही काट डाला।
तदनन्तर अपने धनुष की प्रत्यंचा पर सर-संधान करते हुए महाराज चेटक ने काल कुमार को सावधान करते हुए कहा-"कुमार ! अब इस वृद्ध के शर-प्रहार से अपने प्राणों का त्राण चाहते हो तो रणक्षेत्र से मुह मोड़ कर चले जानो अन्यथा मृत्यु का आलिंगन करने के लिए तत्पर बनो।"
काल कुमार अपने शैलेन्द्र-शिला सम विशाल वक्षस्थल को फुलाये रणक्षेत्र में डटा रहा।
दोनों ओर की सेनाएं श्वास रोके यह सब दृश्य देख रही थी। अनिष्ट की प्राशंका से कूणिक के सैनिकों के हृदय धड़कने लगे। क्योंकि सब इस तथ्य से परिचित थे कि भगवान महावीर के परमभक्त श्रावक होने के कारण चेटक ने यद्यपि यह प्रतिज्ञा कर रखी थी कि वे एक दिन में केवल एक ही बाण चलायेंगे पर उनका वह शरप्रहार भी मृत्यु के समान अमोघ और अचूक होता है।
___ महाराज चेटक ने कुमार काल के भाल को निशाना बनाकर अपने अमोघ शर का प्रहार किया। रक्षा के सब उपाय निष्फल रहे और काल कुमार उस शर के प्रहार से तत्क्षण काल कवलित हो अपने हाथी के होदे पर सदा के लिये सो गये।
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