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वैशाली पर पाक्रमण]
भगवान् महावीर
पद्मावती ने हल्ल-विहल्ल से हार और हाथी हथियाने का कूणिक के सम्मुख हठ किया। प्रारम्भ में तो कणिक ने यह कह कर टालना चाहा कि पिता द्वारा उन्हें प्रदत्त हार तथा हाथी उनसे लेना किसी तरह न्यायसंगत नहीं होगा पर अन्त में नारीहठ के समक्ष कणिक को झकना पड़ा।
कूणिक ने हल्ल और विहल्ल कुमार के सामने सेचनक हाथी और देवदिन्न हार उसे देने की बात रखी।
हल्ल और विहल्ल ने उत्तर में कहा कि पिताजी द्वारा दिये गये हार और हाथी पर उन दोनों भाइयों का वैधानिक अधिकार है। इस पर भी चम्पा-नरेश लेना चाहते हैं तो उनके बदले में प्राधा राज्य देदें।
कूणिक ने अपने भाइयों की न्यायोचित मांग को अस्वीकार कर दिया । इस पर हल्लं और विहल्ल बल-प्रयोग की आशंका से अपने परिवार सहित सेचनक पर सवार हो, हार लेकर वैशाली नगर में अपने नाना चेटक के पास चले गये।
हल्ल-विहल्ल के सपरिवार वैशाली चले जाने की सूचना पा कर कूणिक बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने महाराज चेटक के पास दूत भेज कर कहलवाया कि हार एवं हाथी के साथ हल्ल और विहल्ल कुमार को उसके पास भेज दिया जाय।
महाराज चेटक ने दूत के साथ कूणिक के पास सन्देश भेजा कि दोनों . कुमार उनके शरणागत हैं। एक क्षत्रिय से कभी यह प्राशा नहीं की जा सकती कि वह अपनी शरण में आये हुए को अन्याय में पिलने के लिये असहाय के रूप में छोड़ दे। चम्पाधीश यदि हार और हाथी चाहते हैं तो उनके बदले में चम्पा का प्राधा राज्य दोनों कुमारों को दे दें ।
महाराज चेटक के उत्तर से ऋद्ध हो अपनी और अपने दस भाइयों की प्रबल सेनाओं के साथ करिणक ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया। महाराज चेटक भी अपनी, काशी तथा कोशल के नौ लिच्छवी और नौ मल्ली गणराजाओं की विशाल वाहिनी के साथ रणांगण में प्रा डटे। अपने भाई काल कुमार को कणिक ने सेनापतिपद पर अभिषिक्त किया। काल कुमार ने गरुडव्यूह की रचना की और महाराज चेटक ने शकटव्यूह की। रणवाद्यों के तुमुलघोष से आकाश को आलोडित करती हुई दोनों सेनाएं मापस में भिड़ गई। दोनों प्रोर के अगणित योद्धा रणक्षेत्र में जूझते हुए धराशायी हो गये, पर दोनों सेनामों की व्यूह रचना अभेद्य बनी रही।
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