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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[कूणिक द्वारा
दूर से ही प्रभु के छत्रादि अतिशय देखकर कूणिक अपने हस्तिरत्न से नीचे उतरा और समस्त राजचिह्न उतार कर प्रभु के समवशरण में पहुंचा। उसने आदक्षिणा-प्रदक्षिणा के साथ बड़ी भक्तिपूर्वक प्रभु को वन्दन किया और त्रिविध उपासना करने लगा ।' भगवान् की अमृततुल्य दिव्यध्वनि को सुनकर कूणिक आनन्दविभोर हो बोला- "भगवन् ! जो धर्म आपने कहा है, वैसा अन्य कोई श्रमण या ब्राह्मण नहीं कह सकता।"
तत्पश्चात् करिणक भगवान् महावीर को वन्दन कर अपने परिवार सहित राजप्रासाद की ओर लौट गया।
कूणिक प्रारम्भ से ही बड़ा तेजस्वी और शौर्यशाली था। उसने अपने शासनकाल में अनेक शक्तिशाली और दुर्जेय शत्रों को परास्त कर उन पर विजय प्राप्त की, अतः वह अजातशत्रु के नाम से कहा जाने लगा और इतिहास में आज इसी नाम मे विख्यात है।
कूरिणक द्वारा वैशाली पर प्राक्रमण · कूणिक का वैशाली गणतन्त्र के शक्तिशाली महाराजा चेटक के साथ बड़ा भीषण युद्ध हुआ । उस युद्ध के कारण हुए भयंकर नरसंहार में मृतकों की संख्या एक करोड़, अस्सी लाख बतायी गयी है।
___ इस यद्ध का उल्लेख गोशालक ने चरम रथ-मसल संग्राम के रूप में किया है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इस युद्ध का कुछ विवरण दिया गया है, पर जैन आगम 'भगवती सूत्र' में इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख उपलब्ध होता है ।
यह तो पहले बताया जा चका है कि श्रेणिक की महारानी चेलना महाराज चेटक की पुत्री थी और कणिक महाराज चेटक का दौहित्र । अपने नाना चेटक के साथ करिणक के युद्ध के कारण जैन साहित्य में यह बताया गया है कि श्रेणिक द्वारा जो हाथी एवं हार हल्ल और विहल्ल कुमार को दिये गये थे, उनके कारण वे दोनों राजकुमार बड़े सौभाग्यशाली और समृद्ध समझे जाते थे । हल्ल और विहल्ल कुमार अपनी रानियों के साथ उस हस्ती-रत्न पर प्रारूढ़ हो प्रतिदिन गंगानदी के तट सर जलक्रीड़ा करने जाते । देवप्रदत्त देदीप्यमान हार धारण किये उनको उस सुन्दर गजराज पर बैठे देख कर नागरिक मुक्तकण्ठ से उनकी प्रशंसा करते और कहते कि राज्य-श्री से भी बढ़ कर देवोपम वैभव का उपभोग तो ये दोनों कुमार कर रहे हैं ।
हल्ल-विहल्ल के सौभाग्य की सराहना सुनकर कूणिक की महारानी
१ उववाई सूत्र ।
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