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________________ अजातशत्रु कूपिक ] भगवान् महावीर ७४३ उनके न्यायपूर्ण पक्ष का बड़ी निर्भीकता के साथ समर्थन किया। अपनी शरणागतवत्सलता मौर न्यायप्रियता के कारण महाराज चेटक को चम्पाधिपति कूरिणक के प्रक्रमण का विरोध करने के लिए बड़ा भयंकर युद्ध करना पड़ा मौर अन्त में वैशाली पतन से निर्वेद प्राप्त कर उन्होंने अनशन कर समाधिपूर्वक काल कर देवत्व प्राप्त किया । कूरिक के सा चेटक के युद्ध का और वैशाली के पतन आदि का विवरण आगे कूरिण के प्रसंग में दिया जा रहा है । यहां पर अब कुछ ऐतिहासिक तथ्य समक्ष प्रा रहे हैं जिनसे इतिहासप्रसिद्ध कलिंग नरेश चण्डराय, क्षेमराज ( जिनके साथ भीषण युद्ध कर प्रशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की) और महामेघवाहन खारवेल आदि का महाराज चेटक के वंशधर होने का आभास मिलता है । इन तथ्यों पर इस पुस्तक के दूसरे भाग में यथासंभव विस्तृत विवेचन किया जायगा । आशा की जाती है कि उन तथ्यों से भारत के इतिहास पर अच्छा प्रकाश पड़ेगा और एक लम्बी अवधि का भारत का धूमिल इतिहास सुस्पष्ट हो जायगा । अजातशत्रु कूरिणक I भगवान् महावीर के भक्त राजानों में कूरिणक का भी प्रसुख स्थान है | महाराज श्रेणिक इनके पिता और महारानी चेलना माता थीं। माता ने सिंह का स्वप्न देखा । गर्भकाल में उसको दोहद उत्पन्न हुआ कि श्रेणिक राजा के कलेजे का मांस खाऊं । बौद्ध परम्परानुसार बाहु का रक्तपान करना माना गया है । राजा ने अभयकुमार के बुद्धि कौशल से दोहद की पूर्ति की । गर्भकाल में बालक की ऐसी दुर्भावना देखकर माता को दुःख हुआ । उसने गर्भस्थ बालक को नष्टभ्रष्ट करने का प्रयत्न किया पर बालक का कुछ नहीं बिगड़ा । जन्म के पश्चात् चेलना ने उसको कचरे की ढेरी पर डलवा दिया। एक मुर्गे ने वहां उसकी कनिष्ठा अंगुली काटली जिसके कारण अँगुली में मवाद पड़ गई । अंगुली की पीड़ा से बालक क्रंदन करने लगा। उसकी चीत्कार सुनकर श्रेणिक ने पता लगाया और पुत्र मोह से व्याकुल हो उसे उठाकर फिर महल में लाया गया । बालक की वेदना से खिन्न हो श्रेणिक ने चूस चूसकर अंगुली का मवाद निकाला और उसे स्वस्थ किया । अंगुली के घाव के कारण उसका नाम कूरिणक रक्खा गया । कूरिणक के जन्मान्तर का वैर अभी उपशान्त नहीं हुआ था, अतः बड़े होकर कूणिक के मन में राज्य करने की इच्छा हुई । उसने अन्य दश भाइयों को साथ लेकर अपना राज्याभिषेक कराया और महाराज श्रेणिक को कारावास में डलवा दिया । एक दिन कूरिणक माता के चरण-वंदन को गया तो माता ने उसका चरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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