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________________ ७४२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [राजा चेटक , नेतर विद्वानों ने भी श्रेणिक का जैन होना स्वीकार किया है । डॉ. बी.ए. स्मिथ ने लिखा है-"वह अपने पाप में जैन धर्मावलम्बी प्रतीत होता है। जैन परम्परा उसे संप्रति के समान जैन धर्म का प्रभावक मानती है। श्रेणिक ने महावीर के धर्मशासन की बड़ी प्रभावना की थी । प्रवती होकर भी उन्होंने शासन-सेवा के फलस्वरूप तीर्थकर गोत्र उपाजित किया। प्रथम नारक भूमि से निकलकर वह पानाम नाम के प्रगली चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर रूप से उत्पन्न होंगे। वहां भगवान महावीर की तरह वे भी पंच-महाव्रत रूप सप्रतिक्रमण धर्म की देशना करेंगे। भगवान महावीर के शासन में श्रेणिक और उसके परिवार का धर्मप्रभावना में जितना योग रहा उतना किसी अन्य राजा का नहीं रहा। राबा चेटक श्रेणिक की तरह राजा चेटक भी जैन परम्परा में दृढ़धर्मी उपासक माने गये है, वह भगवान् महावीर के परम भक्त थे। मावश्यक चूणि में इनको व्रतधारी श्राक्क बताया (माना) गया है। महाराजा चेटक की सात कन्याएं थी, वे उस समय के प्रख्यात राजानों को ब्याही गई थीं। इनकी पुत्री प्रभावती वीतभय के राजा उदायन को, पद्मावती अंग देश के राजा दधिवाहन को, मगावती वत्सदेश के राजा शतानीक को, शिवा उज्जैन के राजा चण्डप्रद्योत को, सुज्येष्ठा भगवान् महावीर के भाई नन्दिवर्धन को और बेलना मगधराज बिम्बसार को ब्याही गई थीं। इनमें से सुज्येष्ठा ने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। अटक वैशाली के मणतंत्र के अध्यक्ष थे । वैशाली गणतन्त्र क ७७०७ सदस्य थे जो राजा कहलाते थे। भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ भी इनमें से एक थे। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के अनुसार चेटक के दस पुत्र थे, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सिंह अथवा सिंहभद्र वजिगण का प्रसिद्ध सेनापति था।' महाराज चेटक हैहयवंशी राजा थे। भगवान् महावीर के परम भक्त श्राक्क होने के साथ-साथ अपने समय के महान् योद्धा, कुशल शासक और न्याय के कदर पक्षपाती थे। उन्होंने अपने राज्य, कुटम्ब पोर प्राणों पर संकट मा पड़ने पर भी अन्तिम दम तक प्रन्याय के समक्ष सिर नहीं झुकाया । अपनी शरण में पाये हुए हल्ल एवं विहल्ल कुमार की उन्होंने न केवल रक्षा ही की अपितु १ सो बेडमो सावभो ।मा०, पृ. २४५ । २ जातक अनुकया। ३ तीकर महावीर भाग १ ४ भारतीय इतिहास-एक दृष्टि-पृ० ५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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