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________________ ७४० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [श्रेणिक की धर्मनिष्ठा तक जैन धर्मानुयायी नहीं थे अन्यथा मुनि को भोग के लिये निमंत्रित नहीं करते। प्रनाथी मनि के त्याग, विराग एवं उपदेश से प्रभावित होकर श्रेणिक निर्मल चित्त से जैन धर्म में अनुरक्त हए।' यहीं से श्रेणिक को जैन धर्म का बोध मिला, यह कहा जाय तो अनुचित नहीं होगा। जैनागम-दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार श्रमण भगवान् महावीर जब राजगृह पधारे तब कौटुम्बिक पुरुषों ने आकर श्रेरिणक को भगवान् के शुभागमन का शुभ-संवाद सुनाया। महाराज श्रेणिक इस संवाद को सुनकर बड़े संतुष्ट एवं प्रसन्न हुए और सिंहासन से उठकर जिस दिशा में प्रभ विराजमान थे उस दिशा में सात-पाठ पैर (पद) सामने जाकर उन्होंने प्रभु को वन्दन किया। तदनन्तर वे महारानी चेलना के साथ भगवान् महावीर को वन्दन करने गये और भगवान के उपदेशामत का पान कर बड़े प्रमुदित हुए। उस समय महाराज श्रेणिक एवं महारानी चेलना के अलौकिक सौंदर्य को देखकर कई साधु-साध्वियों ने नियाणा (निदान) कर लिया। महावीर प्रभु ने साधु-साध्यिवों के निदान को जाना और उन्हें निदान के कुफल से परिचित कर पतन से बचा लिया। श्रेणिक और चेलना को देखकर त्यागी वर्ग का चकित होना इस बात को सूचित करता है कि वे साधु-साध्वियों के साक्षात्कार में पहले-पहल उसी समय प्राये हों। श्रमिक की धर्मनिष्ठा महाराज श्रेणिक की निर्ग्रन्थ धर्म पर बड़ी निष्ठा थी। मेघकमार की दीक्षा के प्रसंग में उन्होंने कहा कि निर्ग्रन्थ धर्म सत्य है, श्रेष्ठ है, परिपूर्ण है, मुक्तिमार्ग है, तर्कसिद्ध और उपमा-रहित है। भगवान् महावीर के चरणों में महाराज श्रेणिक की ऐसी प्रगाढ़ भक्ति थी कि उन्होंने एक बार अपने परिवार, सामन्तों और मन्त्रियों के बीच यह घोषणा की-"कोई भी पारिवारिक व्यक्ति भगवान् महावीर के पास यदि दीक्षा ग्रहण करना चाहे तो मैं उसे नहीं रोकगा।"3 इस घोषणा से प्रेरित हो श्रेणिक के जालि, मयालि आदि २३ (तेईस) पुत्र दीक्षित हुए और नन्दा आदि तेईस रानियां भी साध्वियाँ बनीं। केवलज्ञान के प्रथम वर्ष में भगवान महावीर जब राजगृह पधारे तो उस १ धम्माणुरत्तो विमलेण चेमसा ॥ उत्तराध्ययन २० २ शाताधर्म कथा १११ ३ गुणचन्द्र कृत महावीर चरियं, पृ. ३३४ ४ अनुत्तरोववाइय, १११-१० म । २-१-१३ । ५ अंतगड दसा, ७ व., ८ व. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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