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बिम्बसार श्रेणिक] भगवान् महावीर
७३६ दान देकर विनय करे।' इस प्रकार ८ को चार से गुणा करने पर ३२ होते हैं। आचारांग में भी चार वादों का उल्लेख है, यथा-"पायावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी।"२ इसके अतिरिक्त सभाष्य निशीथ चणि में उस समय के निम्नलिखित दर्शन और दार्शनिकों का भी उल्लेख है :
[१] आजीवक [२] ईसरमत [३] उलग [४] कपिलमत [५] कबिल [६] कावाल [७] कावालिय [८] चरग [६] तच्चन्निय [१०] परिव्वायग [११] पंडरंग [१२] बोड़ित [१३] भिच्छुग [१४] भिक्खू [१५] रत्तपड़ [१६] वेद [१७] सक्क [१८] सरक्ख [१६] सुतिवादी [२०] सेयवड़ [२१] सेय भिक्खू [२२] शाक्यमत [२३] हदुसरक्ख । ३
बिम्बसार-श्रेरिणक महाराज श्रेणिक अपर नाम बिम्बसार अथवा भम्भासार इतिहास-प्रसिद्ध शिशुनाग वंश के एक महान् यशस्वी और प्रतापी राजा थे। वाहीक प्रदेश के मूल निवासी होने के कारण इनको वाहीक कुल का कहा गया है।
मगधाधिपति महाराज श्रेणिक भगवान महावीर के भक्त राजारों में एक प्रमुख महाराजा थे। इनके पिता महाराज प्रसेनजित पार्श्वनाथ परम्परा के उपासक सम्यगदष्टि श्रावक थे। उन दिनों मगध की राजधानी राजगह नगर में थी और मगध राज्य की गणना भारत के शक्तिशाली राज्यों में की जाती थी। श्रेणिक-बिम्बसार जन्म से जैन धर्मावलम्बी होकर भी अपने निर्वासन काल में जैनधर्म के सम्पर्क से हट गये हों ऐसा जैन साहित्य के कुछ कथा-ग्रन्थों में उल्लेख प्राप्त होता है। इसका प्रमाण है। महारानी चेलना से महाराज श्रेणिक का धार्मिक संघर्ष । यदि महाराज श्रेणिक सिंहासनारूढ़ होने के समय सही जैन धर्म के उपासक होते तो महारानी चेलना के साथ उनका धार्मिक संघर्ष नहीं होता।
अनाथी मुनि के साथ हुए महाराज श्रेणिक के प्रश्नोत्तर एवं उनके द्वारा अनाथी मुनि को दिये गये भोग-निमन्त्रण से स्पष्ट प्रतीत होता है कि वे उस समय १ सुर १ निवइ २ जइ ३ नाई ४ थविराड ५ बम ६ माई ७ पहसु ८ एएसि मण १ वयण
२ काय ३ दाणेहिं ४ चउव्विहो कीरए विणो ।५७। अट्ठवि चउक्कगुरिणया, बत्तीसा हवंति देणइय भेया। सव्वेहि पिडिएहिं, तिन्नि सया हुंति ते सट्ठा ।।
[प्रव० सारो० सटीक, उत्तरार्ष, पत्र ३४४ (२), २ प्राचा० सटीक, श्रु० १, प्र० १, उ० १, पत्र २० । ३........निशथी सूत्र० चू० भा० १, पृ० १५।। ४ श्रीमत्पाश्बंजिनाधीशशासनांभोजषट्पदः ।
सम्यग्दर्शन पुण्यात्मा, सोऽणुव्रतधरोऽभवत् ।। [त्रिष, १० प, ६ स० श्लोक ८]
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