________________
७३८ जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[प्रज्ञानवादी छः मेदों से गुणन करने पर चौरासी [८४] होते हैं। आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करने से इनके मत में नित्य-अनित्य भेद नहीं माने जाते।'
३. प्रज्ञानवादी इनके मत से ज्ञान में झगड़ा होता है, क्योंकि पूर्ण ज्ञान तो किसी को होता नहीं और अधूरे ज्ञान से भिन्न-भिन्न मतों की उत्पत्ति होती है । अतः ज्ञानोपार्जन व्यर्थ है । अज्ञान से ही जगत् का कल्याण है । ___इनके ६७ भेद बताये गये हैं। जीवादि ६ पदार्थों के [१] सत्व, [२] असत्व, [३] सदसत्व, [४] अवाच्यत्व, [५] सदवाच्यत्व, [६] असदवाच्यत्व और [७] सदसदवाच्यत्व रूप सात भेद करने से ६३ तथा उत्पत्ति के सत्त्वादि चार विकल्प जोड़ने से कुल ६७ भेद होते हैं।
४. विनयवादी विनयपूर्वक चलने वाला विनयवादी कहलाता है । इनके लिंग और शास्त्र पृथक् नहीं होते। ये केवल मोक्ष को मानते हैं। इनके ३२ भेद हैं-[१] सुर [२] राजा [३] यति [४] ज्ञाति [५] स्थविर [६] अधम [७] माता और [८] पिता । इन सब के प्रति मन, वचन, काया से देश-कालानुसार उचित
१ इह जीवाइपयाई पुन्नं पावं विणा उविज्जंति ।
तेसिमहोभायम्मि ठविज्जए सपरसद्द दुगं ।।६४
तस्सवि महो लिहिज्जई काल जहिच्छा य पयदुगसमेयं
नियइ स्सहाव ईसर अप्पत्ति इमं पय चउक्कं ॥५॥
[प्रवचन सारोद्धार उत्तरार्द्ध सटीक, पत्र ३४४-२] २ संत १ मसंत २ संतासंत ३ भवत्तब्य ४ सयमवत्तव्यं । ५ प्रसय प्रवत्तब्वं ६ सयवत्तव्वं ७ च सत्तपया ॥ जीवाइ नवपयाणं महोकमेणं इमाई ठविकएं । जह कीरइ महिलावो तह साहिज्जइ निसामेह ॥१०० संतो जीवो को जाणइ महवा किं व तेण नाएणं । सेसपएहिवि भंगा इय जाया सत्त जीवस्स । एवमजीवाईणवि पत्तेयं सत्त मिलिय ते सट्ठी । तह भन्नेऽवि हु भंगा चत्तारि इमे उ इह हुति । संती भावुप्पत्ती को जाणइ कि तीए नायाए ।
[वही]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org