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महावीरकालीन धर्म परम्पराएँ]
भगवान् महावीर
महावीरकालीन धर्म परम्पराएँ
भगवान् महावीर के समय में इस देश में किन धर्म - परम्पराओं का किस रूप में अस्तित्व था, इसको जानने के लिये जैन साहित्य और श्रागम पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं । मूल में धर्म-परम्परा चार भागों में बाँटी गई थी(१) क्रियावादी, (२) प्रक्रियावादी, (३) अज्ञानवादी और ( ४ ) विनयवादी । " स्थानांग और भगवती में इन्हीं को चार समोसरण के नाम से बताया गया है । इनकी शाखा प्रशाखाओं के भेदों-प्रभेदों का शास्त्रों में विशद वर्णन उपलब्ध होता है, जो इस प्रकार है :
क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ और विनयवादी के ३२ । इस तरह कुल मिलाकर पाषंडी - व्रतियों के ३६३ भेद होते हैं ।
१. क्रियावादी
क्रियावादी आत्मा के साथ क्रिया का समवाय सम्बन्ध मानते हैं । इनका मत है कि कर्ता के बिना पुण्य-पाप श्रादि क्रियायें नहीं होतीं । वे जीव प्रादि नव पदार्थों को एकान्त अस्ति रूप से मानते हैं । क्रियावाद के १८० भेद इस प्रकार हैं: - ( १ ) जीव, (२) अजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) आस्रव, (६) बंध, (७) संवर, (८) निर्जरा और ( 2 ) मोक्ष - ये नव पदार्थ हैं । इनमे से प्रत्येक के स्वतः, परतः और नित्य, अनित्य, काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव रूप भेद करने से १८० भेद होते हैं ।
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२. प्रक्रियावादी
इनकी मान्यता है कि क्रिया- पुण्यादि रूप नहीं है, क्योंकि क्रिया स्थिर पदार्थ को लगती है और उत्पन्न होते ही विनाश होने से संसार में कोई भी स्थिर पदार्थ नहीं है । ये आत्मा को भी नहीं मानते। इनके ८४ प्रकार हैं :
[१] जीव, [२] अजीव, [३] प्रस्रव, [४] संवर, [५] निर्जरा, [६] बंध और [७] मोक्ष रूप सप्त पदार्थ, स्व और पर एवं उनके [१] काल, [२] ईश्वर, [३] आत्मा, [४] नियति, [५] स्वभाव और [६] यदृच्छा-इन
१ [क] सूत्र कृता०, गा० ३०, ३१, ३२ ।
[ख] स्था० ४ | ४ | ३४५ सू० ।
[ग] भग०, ३० श०, १उ०, सू० ८२४ |
२ समवायांग, सू० १३७ ।
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