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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[विरुद्धाचरण
तक वह मन मसोस कर भी जैसे-तैसे उनके साथ चलता रहा । अन्ततः एक दिन भगवान् से तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि जानकर वह उनसे अलग हो गया और नियतिवाद का प्रबल प्रचारक एवं समर्थक बन गया । कुछ दिनों के बाद उसे कुछ मत समर्थक साथी या शिष्य भी मिल गये, तब से वह अपने को जिन और केवली भी घोषित करने लगा ।
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भगवान् जिस समय श्रावस्ती में विराजमान थे, उस समय गोशालक का जिन रूप से प्रचार जोरों से चल रहा था । गोशालक के जिनत्व के सम्बन्ध में गौतम द्वारा जिज्ञासा करने पर प्रभु ने कहा- "गौतम ! गोशालक जिन नहीं, जिन प्रलापी है ।" प्रभु की यह वारणी श्रावस्ती नगरी में फैल गई । गोशालक ने जब यह बात सुनी तो वह क्रोध से तिलमिला उठा । उसने महावीर के शिष्य आनन्द को बुलाकर भला-बुरा कहा और स्वयं प्रावेश में प्रभु के पास पहुँचकर रोषपूर्ण भाषा बोलने लगा ।
महावीर ने पहले से ही अपने श्रमरणों को सूचित कर रखा था कि गोशालक यहाँ आने वाला है और वह अभद्र वचन बोलेगा, अतः कोई भी मुनि उससे संभाषण नहीं करे । प्रभु द्वारा इस प्रकार सावचेत करने के उपरान्त भी गोशालक के अनर्गल प्रलाप और अपमानजनक शब्दों को सुनकर भावावेश में दो मुनि उससे बोल गये । गोशालक ने क्रुद्ध हो उन पर तेजोलेश्या फेंकी, जिससे वे दोनों मुनि काल कर गये । भगवान् द्वारा उद्बोधित किये जाने पर उसने भगवान् को भी तेजोलेश्या से पीड़ित किया । वास्तव में मूढमति पर किये गये उपदेश का ऐसा ही कुपरिणाम होता है, जैसा कि कहा है- “पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ।” विशेष जानकारी के लिये साधनाकालीन विहारचर्या द्रष्टव्य है ।
प्राजीवक नाम की सार्थकता
गोशालक - परम्परा का प्राजीवक नाम केवल आजीविका का साधन होने से ही पड़ा हो, ऐसी बात नहीं है । इस मत के अनुयायी भी विविध प्रकार के तप और ध्यान करते थे। जैसे कि जैनागम स्थानांग में प्राजीवकों के चार प्रकार के तप बतलाये हैं । कल्प चूरिंग आदि ग्रन्थों में पाँच प्रकार के श्रमणों का उल्लेख है, जिसमें एक प्रष्ट्रिका श्रमरण का भी उल्लेख है । ये मिट्टी के बड़े बर्तन में ही बैठ कर तप करते थे ।
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उपर्युक्त निर्देशों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जाना कठिन है कि प्राजीवकमति केवल उदरार्थी होते थे । आश्चर्य की बात तो यह है कि वे श्रात्मवादी, निर्वारणवादी और कष्टवादी होकर भी कट्टर नियतिवादी थे । उनके मत में पुरुषार्थं कुछ भी कार्यसाधक नहीं था, फिर भी अनेक प्रकार के तप और
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