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जैनागमों की मौलिकता] भगवान् महावीर
__इस प्रकार मंख द्वारा उपदिष्ट पासंड व्रत से संबद्ध होने के कारण वह मंखली मंख कहलाया।
अन्यदा मंख परिभ्रमण करते हए सरवण ग्राम में पहुंचा और गोबहल बाह्मण की गोशाला में ठहरा । गोशाला में रहते हुए उसकी पत्नी सुभद्रा ने एक पुत्र को जन्म दिया। गोशाला में उत्पन्न होने के कारण उसका गुणनिष्पन्न नाम गोशालक रखा गया ।
अनुक्रम से बढ़ता हुआ गोशालक बाल्यक्य को पूर्ण कर तरुण हुआ । वह स्वभाव से ही दुष्ट प्रकृति का था, अत: सहज में ही विविध प्रकार के अनर्थ कर डालता, माता-पिता की आज्ञा में नहीं चलता और सीख देने पर द्वेष करता । सम्मानदान से संतुष्ट किये जाने पर क्षण भर सरल रहता और फिर कुत्ते की पंछ की तरह कुटिलता प्रदर्शित करता। बिना थके बोलते ही रहने वाले, कड़कपट के भण्डार और परम मर्मवेधी उस वैताल के समान गोशालक को देखकर सभी सशंक हो जाते।
माँ के द्वारा यह कहने पर-"हे पाप ! मैंने नव मास तक तुझे गर्भ में वहन किया और बड़े लाड़ प्यार से पाला है, फिर भी तू मेरी एक भी बात क्यों नहीं मानता ?" गोशालक उत्तर में यह कहता- "अम्ब ! तू मेरे उदर में प्रविष्ट हो जा मैं दुगुने समय तक तुझे धारण कर रखू गा।"
जब तक गोशालक अपने पिता के साथ कलह नहीं कर लेता तब तक उसे खुलकर भोजन करने की इच्छा नहीं होती । निश्चित रूप से सारे दोष समूहों से उसका निर्माण हुआ था जिससे कि सम्पूर्ण जगत् में उसके समान कोई और दूसरा दृष्टिगोचर नहीं होता था।
इस प्रकार की दुष्ट प्रकृति के कारण उसने सब लोगों को अपने से पराङ मुख कर लिया था। लोग उसको दुष्टजनों में प्रथम स्थान देने लगे। विष-वृक्ष और दृष्टि-विष वाले विषधर की तरह वह प्रथम उद्गगमकाल में ही दर्शनमात्र से भयंकर प्रतीत होने लगा।
किसी समय पिता के साथ खूब लड़-झगड़कर उसने वैसा ही चित्रफलक तैयार करवाया और एकाकी भ्रमण करते हुए उस शाला में चला आया, जहां भगवान् महावीर विराजमान थे।
[महावीर चरियं (गुणचन्द्र रचित) प्रस्ताव ६, पत्र १८३-१८६]
जैनागमों को मौलिकता इस विषय में जैनागमों का कथन इसलिये मौलिक है कि उसे मंखलि का पुत्र बतलाने के साथ गोशाला में उत्पन्न होना भी कहा है। पाणिनि कृत
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