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________________ ७२० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [गोबालक का नामकरण चलते पहुंच गया था, बालक को जन्म दिया। इसलिए उसका नाम 'गोशालक' रखा गया। मंखलि का पुत्र होने से वह मंखलि-पुत्र और गोशाला में जन्म लेने के कारण गोशालक' कहलाया। बड़ा होने पर चित्रफलक हाथ में लेकर गोशालक मंखपने से विचरने लगा। त्रिपिटक में प्राजीवक नेता को मंखलि गोशालक कहा गया है। उसके मंखलि. नामकरण पर बौद्ध परम्परा में एक विचित्र कथा प्रचलित है। उसके अनुसार गोशालक एक दास था। एक बार वह तेल का घड़ा उठाये मागे मागे चल रहा था और पीछे पीछे उसका मालिक । मार्ग में प्रागे फिसलन होने से मालिक ने कहा'तात मंखलि! तात मंखलि! अरे स्खलित मत होना, देख कर चलना' किन्तु मालिक के द्वारा इतना सावधान करने पर भी गोशालक गिर गया, जिससे घड़े का तेल भूमि पर बह चला। गोशालक स्वामी के डर से भागने लगा तो स्वामी ने उसका वस्त्र पकड़ लिया। फिर भी वह वस्त्र छोड़ कर नंगा ही भाग चला। तब से वह नग्न साधु के रूप में रहने लगा और लोग उसे माखलि कहने लगे। - व्याकरणकार 'पाणिनि' और भाष्यकार पतंजलि ने 'मंखलि' का शुद्ध रूप 'मस्करी माना है। "मस्कर मस्करिणो वेणु-परिव्राजकयोः" ६।१।२५४ में मस्करी का सामान्य अर्थ परिव्राजक किया है। भाष्यकार का कहना है कि मस्करी वह साधु नहीं जो हाथ में मस्कर या बांस की लाठी ले कर चलता है, किन्तु मस्करी वह है जो 'कर्म मत करो' का उपदेश देता है और कहता है"शान्ति का मार्ग ही श्रेयस्कर है ।"3 यहाँ गोशालक का नाम स्पष्ट नहीं होने पर भी दोनों का अभिमत उसी प्रोर संकेत करता है । लगता है, गोशालक जब समाज में एक धर्माचार्य के रूप से विख्यात हो चुका, तब 'कर्म मत करो' की व्याख्या प्रचलित हुई, जो उसके नियतिवाद की ओर इशारा करती है। आचार्य गुणचन्द्र रचित 'महावीर चरियं' में गोशालक की उत्पत्ति विषयक सहज ही विश्वास कर लेने और मानने योग्य रोचक एवं सुसंगत विवरण मिलता है। उसमें गोशालक के जीवनचरित्र का भी पूर्णरूपेण परिचय उपलब्ध होता है, इस दष्टि से प्राचार्य गुणचन्द्र द्वारा दिये गये गोशालक के विवरण का अविकल अनुवाद यहां दिया जा रहा है :१ भगवती सूत्र, श० १५२१ । २ (क) माचार्य बुद्धघोष, धम्मपद मट्ठकथा १३१४३ (ख) मज्झिमनिकाय अट्ठकथा, ११४२२ । ३ न वै मस्करोऽस्यास्तीति मस्करी परिप्राजकः । कि तहि माकृत कर्माणि माकृत कर्माणि, शान्तिवः श्रेयसीत्याहातो मस्करी परिव्राजकः॥ [पातजब महानाय ६-१-१५४] - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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