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गोशालक का नामकरण ]
भगवान् महावीर
"उत्तरापथ में सिलिन्ध नाम का सन्निवेश था। वहां केशव नाम के एक ग्रामरक्षक की शिवा नाम की प्रारणप्रिया एवं विनीता पत्नी की कुक्षि से मंख नामक एक पुत्र का जन्म हुआ । क्रमशः वह मंख युवावस्था को प्राप्त हुआ । एक दिन मंख अपने पिता के साथ स्नानार्थ एक सरोवर पर गया और स्नान करने के पश्चात् एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। वहां बैठे-बैठे मंख ने देखा कि एक चक्रवाकयुगल परस्पर प्रगाढ़ प्रेम से लबालब भरे हृदय से अनेक प्रकार की प्रेम-क्रीड़ाएं कर रहा है । कभी तो वह चक्रवाक - मिथुन अपनी चंचुत्रों से कुतरे गये नवीन ताजे पद्मनाल के टुकड़े की छीना-झपटी करके एक दूसरे के प्रति अपने प्रणय को प्रकट करता था तो कभी सूर्य के प्रस्त हो जाने की आशंका से दूसरे को अपने प्रगाढ़ आलिंगन में जकड़ लेता था तो कभी जल में अपने प्रतिबिम्ब को देख कर विरह की आशंका से त्रस्त हो निष्कपट भाव से एक दूसरे को अपना सर्वस्व समर्पण करते हुए मधुर प्रेमालाप में आत्मविभोर हो जाता था ।
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चक्रवाक - युगल को इस प्रकार प्रेमकेलि में खोये हुए जानकर काल की तरह चुपके से सरकते हुए शिकारी ने श्राकर्णान्त धनुष की प्रत्यंचा खींचकर उन पर तीर चला दिया । देव संयोग से वह तीर चकवे के लगा और वह उस प्रहार से मर्माहत हो छटपटाने लगा । चक्रवाक की तथाविध व्यथा को देखकर चकवी ने क्षणभर विलाप कर प्राण त्याग दिये । मुहूर्त्त भर बाद चकवा भी कालधर्म को प्राप्त हुआ ।
इस प्रकार चकवे और चकवी की यह दशा देखकर मंख की आँखें मुद गईं और मूच्छित होकर धरणितल पर गिर पड़ा। जब केशव ने यह देखा तो वह विस्मित हो सोचने लगा कि यह अकल्पित घटना कैसे घटी । उसने शीतलोपचारों से मंख को आश्वस्त किया और थोड़ी देर पश्चात् मंख की मूर्च्छा दूर होने पर केशव ने उससे पूछा - " पुत्र ! क्या किसी वात दोष से, पित्त दोष से अथवा और किसी शारीरिक दुर्बलता के कारण तुम्हारी ऐसी दशा हुई है जिससे कि तुम चेष्टा रहित हो बड़ी देर तक मूच्छित पड़े रहे ? क्या कारण है, सच सच बताओ ?"
मंख ने भी अपने पिता की बात सुनकर दीर्घ विश्वास छोड़ते हुए कहा“ तात ! इस प्रकार के चक्रवाक - युगल को देखकर मुझे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आया । मैंने पूर्वजन्म में मानसरोवर पर इसी प्रकार चक्रवाक के मिथुन रूप से रहते हुए एक भील द्वारा छोड़े गये बारण से अभिहत हो विरह-व्याकुला चकवी के साथ मरण प्राप्त किया था और तत्पश्चात् मैं आपके यहाँ पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ हूं। इस समय मैं स्मृतिवश अपनी उस चिरप्रणयिनी चकवी के विरह को सहने में असमर्थ होने के कारण बड़ा दुखी हूं।"
केशव ने कहा - " वत्स ! प्रतीत दुःख के स्मरण से क्या लाभ? कराल
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