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महावीर और गोशालक] भगवान् महावीर
७१६ विधिपूर्वक प्रतिलाभ देकर तिष्यगुप्त को प्रसन्न किया एवं सादर उन्हें गुरु-सेवा में भेज कर उनकी संयम शुद्धि में सहायता प्रदान की।
- महावीर और गोशालक भगवान् महावीर और गोशालक का वर्षों निकटतम सम्बन्ध रहा है। जैन शास्त्रों के अनुसार गोशालक प्रभु का शिष्य हो कर भी प्रबल प्रतिद्वन्द्वी के रूप में रहा है । भगवती सूत्र में इसका विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है । भगवान ने गोशालक को अपना कूशिष्य कह कर, परिचय दिया है। यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से गोशालक पर कुछ प्रकाश डाला जा रहा है।
डॉ. विमलचन्द्र झा ने गोशालक को चित्रकार अथवा चित्रविक्रेता का पुत्र बतलाया है।' कुछ इतिहास लेखकों ने मंखलि का अर्थ बांस की लाठी ले कर चलने वाला साधु किया है, पर उपलब्ध प्रमाणों के प्रकाश में प्रस्तुत कथन प्रमाणित नहीं होता। वास्तव में गोशालक का पिता मंखलि-मंख था, मंख का अर्थ चित्रकार या चित्रविक्रेता नहीं होता । मंख केवल शिव का चित्र दिखला कर अपना जीवनयापन करता था।२ कारपेंटियर ने भी अपना यही मत प्रकट किया है।
जैन सत्रों में गोशालक के साथ मंखलि-पुत्र शब्द का भी प्रयोग मिलता है जो गोशालक के विशेषण रूप से प्रयुक्त है। टीकाकार अभयदेवसूरि ने भगवती सूत्र की टीका में कहा-"चित्रफलकं हस्ते गतं यस्य स तथा"। इसके अनुसार मंख का अर्थ चित्र-पट्ट हाथ में रख कर जीविका चलाने वाला होता है। पूर्व समय में मंख एक जाति थी, जिसके लोग शिव या किसी देव का चित्रपट्ट हाथ में रखकर अपनी जीविका चलाते थे। आज भी 'डाकोत' जाति के लोग शनि देव की मूर्ति या चित्र दिखा कर जीविका चलाते हैं ।
गोशालक का नामकरण गोशालक के नामकरण के सम्बन्ध में भगवती सूत्र में स्पष्ट निर्देश मिलता है। वहां कहा गया है कि 'मंख' जातीय मंखली गोशालक का पिता था
और भद्रा माता थी। मंखली की गर्भवती भार्या भद्र ने 'सरवरण' ग्राम के गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला में, जहां कि मंखली जीविका के प्रसंग से चलते
१ इन्डोलोजिकल स्टगेज सैकिंड, पेज २४५ ।। २ डिक्श० माफ पेटी प्रोपर नेम्न पार्ट १ पेज ४० । ३ (क) केदारपट्टिक, पृ० २४११,
(ब) हरिभद्रीय प्राव. वृ०, पृ० २४१ ।
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