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जमालि]
भगवान् महावीर
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लमालि __जमालि महावीर का भानेज और उनकी एकमात्र पुत्री प्रियदर्शना का पति होने से जामाता भी था । श्रमण भगवान् महावीर के पास इसने भी भावपूर्वक श्रमरण दीक्षा ली और भगवान् के केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर चौदह वर्ष के बाद प्रथम निन्हव के रूप में प्रख्यात हुआ।
जमालि के प्रवचन-निन्हव होने का इतिहास इस प्रकार है :
दीक्षा के कुछ वर्ष बाद जमालि ने भगवान् से स्वतन्त्र विहार करने की आज्ञा माँगी । भगवान् ने उसके पूछने पर कुछ भी उत्तर नहीं दिया। उसने दुहरा-तिहरा कर अपनी बात प्रभु के सामने रखी, किन्तु भगवान् मौन ही विराजे रहे । प्रभु के मौन को ही स्वीकृति समझ कर पाँच सौ साधुनों के साथ जमालि अनगार महावीर से पृथक् हो कर जनपद की ओर विहार कर गया ।
अनेक ग्राम-नगरों में विचरण करते हुए वह 'सावत्थी' पाया और वहां के कोष्ठक उद्यान में अनुमति लेकर स्थित हुआ। विहार के अन्त, प्रान्त, रूक्ष एवं प्रतिकूल आहार के सेवन से जमालि को तीव्र रोगातंक उत्पन्न हो गया। उसके शरीर में जलन होने लगी। भयंकर दाह-पीड़ा के कारण उसके लिये बैठे रहना भी संभव नहीं था। उसने अपने श्रमणों से कहा-"आर्यो ! मेरे लिये संथारा कर दो जिससे मैं उस पर लेट जाऊं। मुझसे अब बैठा नहीं जाता।" साधुनों ने "तथास्तु" कह कर संथारा-आसन करना प्रारम्भ किया। जमालि पीड़ा से अत्यंत व्याकुल था। उसे एक क्षण का भी विलम्ब असह्य था। अतः उसने पूछा-"क्या आसन हो गया ?" विनयपूर्वक साधुओं ने कहा"महाराज ! कर रहे हैं, अभी हुअा नहीं है ।"
___ साधुओं के इस उत्तर को सुन कर जमालि को विचार हुग्रा-"श्रमण भगवान महावीर जो चलमान को चलित एवं क्रियमारण को कृत कहते हैं, वह मिथ्या है । मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि क्रियमाण शय्या संस्तारक प्रकृत है। फिर तो चलमान को भी प्रचलित ही कहना चाहिये । ठीक है, जब तक शय्यासंस्तारक पूरा नहीं हो जाता तब तक उसको कृत कैसे कहा जाय ?" उसने अपनी इस नवीन उपलब्धि के बारे में अपने साधुओं को बुला कर कहा"मार्यो ! श्रमण भगवान् महावीर जो चलमान को चलित और क्रियमाण को कृत मादि कहते हैं, वह ठीक नहीं है । चलमान आदि को पूर्ण होने तक प्रचलित कहना चाहिये।"
बहुत से साधु, जो जमालि के अनुरागी थे, उसकी बात पर श्रद्धा करने १ पियदंसरणा वि पइणोऽणुरागओ तम्मयं चिय पवण्णा । विशे. २३२५
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