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________________ ७०६ महावीर का शासन-भेद] भगवान् महावीर उपर्युक्त समाधान से ध्वनित होता है कि भगवान पार्श्वनाथ ने मैथुन को भी परिग्रह के अन्तर्गत माना था।' कुछ लेखकों ने चातुर्याम का सम्बन्ध महाव्रत से न बताकर चारित्र से बतलाया है पर ऐसा मानना उचित प्रतीत नहीं होता। बाईस तीथंकरों के समय में सामायिक, सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात चारित्र में से कोई एक होता है। किन्तु महावीर के समय में पांच में से कोई भी एक चारित्र एक साधक को हो सकता है। सामायिक या छेदोपस्थापनीय चारित्र के समय अन्य चार नहीं रहते। अत: चातुर्याम का अर्थ 'चारित्र' करना ठीक नहीं। योगाचार्य पतञ्जलि ऋषि ने भी याम का अर्थ अहिंसा आदि व्रत ही लिया है । ' डॉ० महेन्द्रकुमार ने स्पष्ट लिखा है कि अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह इन चातुर्याम धर्म के प्रवर्तक भगवान् पार्श्वनाथ जी थे ।' श्वेताम्बर प्रागमों की दृष्टि से भी स्त्री को परिग्रह की कोटि में ही शामिल किया गया है । भगवान् द्वारा व्रत-संख्या में परिवर्तन का कारण समय और बुद्धि का प्रभाव हो सकता है। भगवान् पार्श्व के परिनिर्वाण के पश्चात् और महावीर के तीर्थकर होने से कुछ पूर्व संभव है, इस प्रकार के तर्क का सहारा लेकर साधक विचलित होने लगा हो और भगवान् पार्श्व की परम्परा में उस पर पूण व दृढ़ अनुशासन नहीं रखा जा सका हो । वैसी स्थिति में भगवान महावीर ने वक्र स्वभाव के लोग अपनी रुचि के अनुकूल परिग्रह या स्त्री का त्याग कर दूसरे का उपयोग प्रारम्भ न करें, इस भावो हित को ध्यान में रख कर ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का स्पष्टतः पृथक् विधान कर दिया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। संख्या का अन्तर होने पर भी दोनों परम्पराओं के मौलिक प्राशय में भेद नहीं है । केवल स्पष्टता के लिये पृथक्करण किया गया है । चारित्र भगवान् पार्श्वनाथ के समय में श्रमणवर्ग को सामायिक चारित्र दिया जाता था जब कि भगवान महावीर ने सामायिक के साथ छेदोपस्थापनीय १ उत्तराध्ययन सूत्र, प्र० २३, गाथा २६-२७ । (ब) मैथुनं परिग्रहेऽन्तर्भवति, न अपरिग्रहीता योषिद् भुज्यते । स्था० ५०, ४ उ० सू० २६६ । पत्र २०२ (१) २ अहिंसासत्यास्तेय ब्रह्मचर्याऽपरिग्रहा यमाः । पतंजलि (योगसूत्र) सू० २० । ३ डॉ. महेन्द्रकुमार-जैन दर्शन-पृ० ६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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