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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [धारिणी के मरण का कारण
इस पर एक वृद्धा दासी ने चन्दना की दुर्दशा से द्रवित हो साहस बटोर कर सारा हाल कह सुनाया। तलघर के कपाट खोलकर धनावह ने ज्यों ही चन्दना को उस दुर्दशा में देखा तो रो पड़ा। चन्दना के भूख और प्यास से मुआये हुए मुख को देखकर वह रसोईघर की ओर लपका। उसे सूप में कुछ उड़द के बाकलों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला। वह उसी को उठाकर चन्दना के पास पहुंचा और सूप चन्दना के समक्ष रखते हुए अवरुद्ध कण्ठ से बोला-"पुत्री, अभी तुम इन उड़द के बाकलों से ही अपनी भूख की ज्वाला को कुछ शान्त करो, मैं अभी किसी लोहार को लेकर आता हूँ।"
यह कह कर धनावह किसी लोहार की तलाश में तेजी से बाजार की पोर निकला।
भूख से पीड़ित होते हुए भी चन्दना ने मन में विचार किया-"क्या मुझ हतभागिनी को इस अति दयनीय विषम अवस्था में आज बिना अतिथि को खिलाये ही खाना पड़ेगा ? मध्याकाश से अब सूर्य पश्चिम की ओर ढल चुका है, इस वेला में अतिथि कहाँ ?"
अपने दुर्भाग्य पर विचार करते-करते उसकी आँखों से अश्रुषों की अविरल धारा फूट पड़ी। उसने अतिथि की तलाश में द्वार की ओर देखा। सहसा उसने देखा कि कोटि-कोटि सूर्यो की प्रभा के समान देदीप्यमान मुखमण्डल वाले प्रति कमनीय, गौर, सुन्दर, सुडौल दिव्य तपस्वी द्वार में प्रवेश कर उसकी ओर बढ़ रहे हैं । हर्षातिरेक से उसके शोकाश्रुओं का सागर निमेषार्द्ध में ही सूख गया। उसके मुखमण्डल पर शरदपूर्णिमा की चन्द्रिका से उद्वेलित समुद्र के समान हर्ष का सागर हिलोरें लेने लगा। चन्दना सहसा सप को हाथ में लेकर उठी। बेड़ियों से जकड़े अपने एक पैर को बड़ी कठिनाई से देहली से बाहर निकाल कर उसने हर्षगद्गद स्वर में अतिथि से प्रार्थना की-"प्रभो ! यद्यपि ये उड़द के बाकले आपके खाने योग्य नहीं हैं, फिर भी मुझ अबला पर अनुग्रह कर इन्हें ग्रहण कीजिये।"
__ अपने अभिग्रह की पूर्ति में कुछ कमी देखकर वह अतिथि लोटने लगा। इससे अति दुखित हो चन्दना के मुंह से सहसा ही ये शब्द निकल पड़े-"हाय रे दुर्देव ! इससे बढ़कर मेरा और क्या दुर्भाग्य हो सकता है कि आँगन में पाया हुमा कल्पतरु लौट रहा है ?" इस शोक के प्राघात से चन्दना की आँखों से पुनः अश्रुओं की धारा बह चली । अतिथि ने यह देख कर कि उनके अभिग्रह की सभी शर्ते पूर्ण हो चुकी हैं, चन्दना के सम्मुख अपना करपात्र बढ़ा दिया। चन्दना ने हर्ष विभोर होकर प्रत्युत्कट श्रद्धा से सूप में रक्खे उड़द के बाकलों को अतिथि के करपात्र में उंडेल दिया।
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