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________________ वचन या बलात्] भगवान् महावीर ७०५ चन्दना ने जब कुछ समय बाद यौवन में पदार्पण किया तो उसका अनुपम सौन्दर्य शतगुणित हो उठा। उसकी कज्जल से भी अधिक काली केशराशि बढ़कर उसकी पिण्डलियों से अठखेलियां करने लगी । उस अपार रूपराशि को देखकर श्रेष्ठिपत्नी के हृदय का सोता हुया स्त्री-दौर्बल्य जग पड़ा। उसके अन्तर में कलुषित विचार उत्पन्न हुए और उसने सोचा-"यह अलौकिक रूपलावण्य की स्वामिनी किसी दिन मेरा स्थान छीन कर गृहस्वामिनी बन सकती है । मेरे पति इसे अपनी पुत्री मानते हैं, पर यदि उन्होंने कहीं इसके अलौकिक रूप-लावण्य पर विमोहित हो इससे विवाह कर लिया तो मेरा सर्वनाश सुनिश्चित है । अतः फूलने-फलने से पहले ही इस विषलता को मूलतः उखाड़ फेंकना ही मेरे लिये श्रेयस्कर है । दिन-प्रति-दिन मूला के हृदय में ईर्ष्या की अग्नि प्रचण्ड होती गई और वह चन्दना को अपनी राह से सदा के लिये हटा देने का उपाय सोचने लगी। एक दिन दोपहर के समय ग्रीष्म ऋतु की चिलचिलाती धूप में चल कर धनावह बाजार से अपने घर लौटा । उसने पैर धुलाने के लिये अपने सेवकों को पुकारा । पर संयोगवश उस समय कोई भी सेवक वहां उपस्थित नहीं था। धूप से श्रान्त धनावह को खड़े देख कर चन्दना जल की झारी ले सेठ के पैर धोने पहुंची। सेठ द्वारा मना करने पर भी वह उसके पैर धोने लगी। उस समय नीचे झुकने के कारण चन्दना का जूड़ा खुल गया और उसकी केशराशि बिखर गई। चन्दना के बाल कहीं कीचड़ से न सन जावें इस दृष्टि से सहज सन्ततिवात्सल्य से प्रेरित हो धनावह ने चन्दना की केशराशि को अपने हाथ में रही हुई यष्टि से ऊपर उठा लिया और अपने हाथों से उसका जूड़ा बाँध दिया। मला ने संयोगवश जब यह सब देखा तो उसने अपने सन्देह को वास्तविकता का रूप दे डाला और उसने चन्दना का सर्वनाश करने की ठान ली। थोड़ी ही देर पश्चात् श्रेष्ठी धनावह जब किसी कार्यवश दूसरे गाँव चला गया तो मूला ने तत्काल एक नाई को बुलाकर चन्दना के मस्तक को मुडित करवा दिया। मूला ने बड़ी निर्दयता से चन्दना को जी भर कर पीटा । तदनन्तर उसके हाथों में हथकड़ी एवं पैरों में बेड़ी डालकर उसे एक भँवारे में बन्द कर दिया और अपने दास-दासियों एवं कुटुम्ब के लोगों को सावधान कर दिया कि श्रेष्ठी द्वारा पूछने पर भी यदि किसी ने उन्हें चन्दना के सम्बन्ध में कुछ भी बता दिया तो वह उसका कोपभाजन बनेगा। चन्दना तीन दिन तक तलघर में भूखी प्यासी बन्द रही। तीसरे दिन जब धनावह घर लौटा तो उसने चन्दना के सम्बन्ध में पूछताछ की । सेवकों को मौन देखकर धनावह को शंका हुई और उसने क्रुद्ध स्वर में चन्दना के सम्बन्ध में सच-सच बात बताने के लिये कड़क कर कहा- "तुम लोग मूक की तरह चप क्यों हो, बतायो पुत्री चन्दना कहाँ है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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