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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [धारिणी के मरण का कारण कर दूसरे हाथ से अपनी ठुड्डी पर प्रति वेग से प्राघात किया। इसके परिणामस्वरूप वह तत्क्षण निष्प्राण हो रथ में गिर पड़ी ।'
धारिणी के मरण का कारण-वचन या बलात् धारिणी के प्राकस्मिक अवसान से सैनिक को अपनी भूल पर प्रात्मग्लानि के साथ साथ बड़ा दुःख हुअा। उसे निश्चय हो गया कि किसी प्रत्युच्च कुल की कुलवधू होने के कारण वह उसके वाग्बाणों से माहत हो मृत्यु की गोद में सदा के लिये सो गई है।
सैनिक ने इस आशंका से कि कहीं अधखिली पारिजात पुष्प की कली के समान यह सुमनोहर बालिका भी अपनी माता का अनुसरण न कर बैठे, उसने वसुमती को मृदु वचनों से आश्वस्त करने का प्रयास किया।
राजकुमारी वसुमती को लिये वह सैनिक कौशाम्बी पहँचा और उसे विक्रय के लिये बाजार में चौराहे पर खड़ा कर दिया। धार्मिक कृत्य से निवृत्त हो अपने घर की ओर लौटते हुए धनावह नामक एक श्रेष्ठी ने विक्रय के लिये खड़ी बालिका को देखा। उसने कुसुम सी सुकुमार बालिका को देखते ही समझ लिया कि वह कोई बहुत बड़े कुल को कन्या है और दुर्भाग्यवश अपने मातापिता से बिछुड़ गई है। वह उसकी दयनीय दशा देखकर द्रवित हो गया और उसने सैनिक को महमांगा द्रव्य देकर उसे खरीद लिया। धनावह श्रेष्ठी वसुमती को लेकर अपने घर पहुंचा।
उसने बड़े दुलार से उसके माता-पिता एवं उसका नाम पूछा, पर स्वाभिमानिनी वसुमती ने अपना नाम तक भी नहीं बताया। वह मौन ही रही । अन्त में लाचार हो धनावह ने उसे अपनी पत्नी को सौंपते हुए कहा-"यह बालिका किसी साधारण कुल की प्रतीत नहीं होती। इसे अपनी ही पुत्री समझ कर बड़े दुलार और प्यार से रखना"
___ श्रेष्ठिपत्नी मला ने अपने पति की आज्ञानुसार प्रारम्भ में वसुमती को अपनी पुत्री के समान ही रक्खा । वसुमती श्रेष्ठी परिवार में घुल-मिल गई। उसके मृदु सम्भाषण, व्यवहार एवं विनय प्रादि सद्गुणों ने श्रेष्ठी परिवार एवं भृत्य वर्ग के हृदय में दुलार भरा स्थान प्राप्त कर लिया। उसके चन्दन के समान शीतल सुखद स्वभाव के कारण वसुमती उसे श्रेष्ठी परिवार द्वारा चन्दना के नाम से पुकारी जाने लगी।
१ प्राचार्य हेमचन्द्र ने शोकातिरेक से धारिणी के प्राण निकलने का उल्लेख किया है ,
देखिये-[त्रि. श. पु., पर्व १०, सं० ४, श्लो. ५२७]
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