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________________ भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या] भगवान् महावीर ७०३ चम्पा नगरी पर आक्रमण करने की टोह में रहने, लगा। दधिवाहन बड़े प्रजाप्रिय नरेश थे, अतः शतानीक ने अप्रत्याशित रूप से चम्पा पर अचानक आक्रमण करने की अभिलाषा से अपने अनेक गुप्तचर चम्पानगरी में नियुक्त किये। कुछ ही दिनों के पश्चात् शतानीक को अपने गुप्तचरों से ज्ञात हुमा कि चम्पा पर आक्रमण करने का उपयुक्त अवसरमा गया है, अत: चार-पांच दिन के अन्दर-अन्दर ही आक्रमण कर दिया जाय । शतानीक तो उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में ही था । उसने तत्काल एक बड़ी सेना के साथ चम्पा पर धावा करने के लिये जलमार्ग से सैनिक अभियान कर दिया। तेज हवाओं के कारण शतानीक के जहाज बड़ी तीव्रगति से चम्पा की ओर बढ़े। एक रात्रि के अल्प समय में ही शतानीक अपनी सेनाओं के साथ चम्पा जा पहुंचा और सूर्योदय से पूर्व ही उसने चम्पा नगरी को चारों ओर से घेर लिया। इस अनभ्र वज्रपात से चम्पा के नरेश और नागरिक सभी अवाक रह गये । अपने आप को शत्रु के प्राकस्मिक आक्रमण का मुकाबला कर सकने की स्थिति में न पाकर दधिवाहन ने मन्त्रिपरिषद् की आपात्कालीन बैठक बुलाकर गुप्त मंत्रणा की। अन्त में मन्त्रियों के प्रबल अनुरोध पर दधिवाहन को गुप्त मार्ग से चम्पा को त्याग कर बीहड़ वनों की राह पकड़नी पड़ी। शतानीक ने अपने सैनिकों को खुली छूट दे दी कि चम्पा के प्राकारों एवं द्वारों को तोड़कर उस को लूट लिया जाय और जिसे जो चाहिये वह अपने घर ले जाय । इस प्राज्ञा से सैनिकों में उत्साह और प्रसन्नता की लहर दौड़ गई पौर वे द्वारों तथा प्राकारों को तोड़कर नगर में प्रविष्ट हो गये। ____ शतानीक की सेनामों ने यथेच्छ रूप से नगर को लूटा। महारानी धारिणी राजकुमारी वसुमती सहित शतानीक के एक सैनिक द्वारा पकड़ ली गई। वह उन दोनों को अपने रथ में डालकर कौशाम्बी की ओर द्रुत गति से लौट पड़ा। महारानी धारिणी के देवांगना तुल्य रूप-लावण्य पर मुग्ध हो सैनिक राह में मिलने वाले अपने परिचित लोगों से कहने लगा-"इस लूट में इस त्रैलोक्य सुन्दरी को पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है । घर पहुंचते ही मैं इसे अपनी पत्नी बनाऊँगा।" इतना सुनते ही महारानी धारिणी क्रोध और घृणा से तिलमिला उठी। महान् प्रतापी राजा की पुत्री और चम्पा के यशस्वी नरेश दधिवाहन की राजमहिषी को एक अकिंचन व्यक्ति के मुंह से इस प्रकार की बात सुनकर वन से भी भीषण आघात पहुँचा। अपने सतीत्व. पर आँच पाने की आशंका से धारिणी सिहर उठी । उसने एक हाथ से अपनी जिह्वा को मुख से बाहर खींच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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