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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[एक बहुत बड़ा भ्रम
सभी ग्यारहों गणधरों ने एक ही दिन भगवान् महावीर के पास श्रमणदीक्षा ग्रहण की, यह तथ्य सर्वविदित है । उस दशा में यह कैसे संभव हो सकता है कि एक ही दिन दीक्षा ग्रहण करते समय बड़ा भाई ५३ वर्ष की अवस्था का हो और छोटा भाई ६५ वर्ष का, अर्थात् बड़े भाई से उम्र में १२ वर्ष बड़ा हो?
स्वयं मुनि श्री रत्नप्रभ विजयजी ने अपने ग्रंथ Sramana Bhagvan Mahavira, Vol. IV Part I Sthaveravali' के पृष्ठ १२२ और१२४ पर दीक्षा के दिन आर्य मंडित की अवस्था ५३ वर्ष और प्रार्य मौर्यपुत्र की अवस्था ६५ वर्ष होने का उल्लेख किया यथा :
"Gandhara Maharaja Mandita was fifty-three years old when he renounced the world........ After a period of fourteen years of ascetic life, Mandita acquired Kevala Gyana........and he acquired Moksha Pada........when he was eighty three years old." (p. 122)
"Gandhara Maharaja Mauryaputra was sixty-five years old when he renounced the world........After a period of fourteen years of ascetic life, Ganadhara Mauryaputra acquired Kevala Gyana.......at the age of seventynine.
Ganadhara Maharaja Mauryaputra remained a Kevali for sixteen years and he acquired Moksha Pada........when he was ninetyfive years old." (p. 124)
इन सब तथ्यों से उपयुक्त प्राचार्यों की मान्यता केवल भ्रम सिद्ध होती है। वास्तव में ये सहोदर नहीं थे । प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी आगमीय वयमान को लक्ष्य में नहीं रखते हुए केवल दोनों की माता का नाम एक होने के आधार पर ही दोनों को सहोदर मान लिया और 'लोकाचारो हि न हिये' लिख कर अपनी मान्यता का प्रौचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया।
मगवान् महावीर की प्रथम शिष्या भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या एवं श्रमणीसंघ की प्रवर्तिनी महासती चन्दनबाला थी।
- चन्दनबाला चम्पानगरी के महाराजा दधिवाहन और महारानी धारिणी की प्राणदुलारी पुत्री थी। माता-पिता द्वारा आपका नाम वसुमती रखा गया।
महाराजा दधिवाहन के साथ कौशाम्बी के महाराजा शतानीक की किसी कारण से अनबन हो गई। शतानीक मन ही मन दधिवाहन से शत्रुता रख कर
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