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एक बहुत बड़ा भ्रम ]
भगवान् महावीर
मुनि श्री रत्नप्रभ विजयजी ने Sramana Bhagwan Mahavira, Vol. V Part I Sthaviravali के पृष्ठ १३६ और १३७ पर मंडित एवं मौयंपुत्र की माता एक और पिता भिन्न-भिन्न बताते हुए यहां तक लिख दिया है कि उस समय मौर्य निवेश में विधवा विवाह निषिद्ध नहीं था। मुनि श्री द्वारा लिखित पंक्तियाँ यहाँ उद्धत की जाती हैं
"Besides Sthavira Mandita and Sthavira Mauyraputra were brothers having one mother Vijayadevi, but have different gotras derived from the gotras of their different fathers-the father of Mandit was Dhanadeva of Vasistha-gotra and the father of Mauryaputra was Maurya of Kasyaqa-gotra, as it was not forbidden for a widowed female in that country, to have a re-marriage with another person, after the death of her former husband.,'
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वास्तव में उपर्युक्त दोनों गणधरों की माता का नाम एक होने के कारण ही प्राचार्यों एवं विद्वानों की इस प्रकार की धारणा बनी कि इनकी माता एक थी और पिता भिन्न ।
उपर्युक्त दोनों गणधरों के जीवन के सम्बन्ध में जो महत्त्वपूर्ण तथ्य समवायांग सूत्र में दिये हुए हैं उनके सम्यग् अवलोकन से आचार्यों एवं विद्वानों द्वारा अभिव्यक्त की गई उपरोक्त धारणा सत्य सिद्ध नहीं होती ।
समवायांग सूत्र की तियासीवीं समवाय में आर्य मंडित की सर्वायु तियासी वर्ष बताई गई है । यथा :
"थेरेरणं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध जावप्पहीणे ।"
समवायांग सूत्र की तीसवीं समवाय में प्रायं मंडित के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है कि वे तीस वर्ष तक श्रमरणधर्म का पालन कर सिद्ध हुए । यथा :
"थेरेणं मंडियपुत्ते तीसं वासाई सामण्णपरियायं पाउरिणत्ता सिद्ध बुद्ध जाव सव्वदुक्खपहीणे ।” सूत्र के
मूल पाठ से यह निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि आर्य मंडित ने ५३ वर्ष की अवस्था में भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहरण की
प्रार्य मौर्यपुत्र के सम्बन्ध में समवायांग सूत्र की पैंसठवीं समवाय में लिखा है कि उन्होंने ६५ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की । यथा :
"थेरेगं मोरियपुत्ते परणसट्ठिवासाइं प्रागारमज्झे वसित्ता मुडे भवित्ता प्रगारा अरणगारियं पव्वइये ।"
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