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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[वायुभूति पर ब्राह्मणी स्थण्डिला के गर्भ में आया। जिस समय बालक इन्द्रभूति था, उस समय माता स्थण्डिला ने गर्भकाल पूर्ण होने पर एक महान् तेजस्वी एवं सुन्दर पूत्र को जन्म दिया। माता-पिता ने अपने इस द्वितीय पुत्र का नाम गार्ग्य रखा। यही बालक आगे चल कर अग्निभूति के नाम से विख्यात हुआ।
वायुभूति कालान्तर में शाण्डिल्य की द्वितीय पत्नी केसरी के गर्भ में भी पंचम स्वर्ग से च्युत एक देव उत्पन्न हुआ। समय पर केसरी ने भी पुत्ररत्न को जन्म दिया। शाण्डिल्य ने अपने उस तीसरे पुत्र का नाम भार्गव रखा। वही बालक भार्गव आगे चल कर लोक में वायुभूति के नाम से विश्रुत हुआ।
एक बहुत बड़ा भ्रम भगवान महावीर के छठे गणधर मंडित और सातवें गणधर मौर्यपत्र के सम्बन्ध में पूर्वकालीन कुछ आचार्यों और वर्तमान काल के कुछ विद्वानों ने यह मान्यता प्रकट की है कि वे दोनों सहोदर थे। उन दोनों की माता एक थी जिसका कि नाम विजयादेवी था। आर्य मण्डित के पिता का नाम धनदेव और
आर्य मौर्यपुत्र के पिता का नाम मौर्य था । आर्य मण्डित को जन्म देने के कुछ काल पश्चात् विजयादेवी ने अपने पति धनदेव का निधन हो जाने पर धनदेव के मौसेरे भाई मौर्य के साथ विवाह कर लिया और मौर्य के साथ दाम्पत्य जीवन बिताते हुए विजयादेवी ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। मौर्य का अंगज होने के कारण बालक का नाम मौर्यपुत्र रखा गया।
प्राचार्य हेमचन्द्र ने आर्य मण्डित और आर्य मौर्यपुत्र के माता-पिता का परिचय देते हुए 'त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र' में लिखा है :
पत्न्यां विजयदेव्यां तु, धनदेवस्य नन्दनः । मण्डकोऽभूत्तत्र जाते, धनदेवो व्यपद्यत ॥५३ लोकाचारो ह्यसौ तत्रेत्यभार्यो मौर्यकोऽकरोत् । भार्या विजयदेवी तां, देशाचारो हि न ह्रिये ॥५४ क्रमाद् विजयदेव्यां तु मौर्यस्य तनयोऽभवत् । स च लोके मौर्यपुत्र इति नाम्नैव पप्रथे ।।५५
[त्रिष. श. पु. च., प. १०, स. ५] प्राचार्य जिनदासगणी ने भी 'पावश्यकचूणि' में इन दोनों गणधरों के सम्बन्ध में लिखा है :---
_..."तंमि चेव मगहा जणयते मोरिय सन्निवेसे मंडिया मोरिया दो भायरो।"........
[प्राव. चूणि, उपोद्घात पृ. ३३७
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