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________________ साधु गणपर भगवान् महावीर केवली ___सात सौ (७००) मनःपर्यवज्ञानी पांच सौ (५००) अवधिज्ञानी तेरह सौ (१,३००) चौदह पूर्वधारी तीन सौ (३००) वादी चार सी (४००) वैक्रिय लब्धिधारी सात सौ (७००) अनुत्तरोपपातिक मुनि पाठ सौ (८००) चौदह हजार (१४,०००) साध्वियाँ चन्दना प्रादि छत्तीस हजार (३६,०००) श्रावक शंख प्रादि एक लाख उनसठ हजार (१,५६,०००) श्राविकाएं सुलसा, रेवती प्रभृत्ति तीन लाख अठारह हजार (३,१८,०००) भगवान् महावीर के शासन में सात सौ साधुनों और चौदह सौ साध्वियों ने निर्वाण प्राप्त किया। यह तो केवल व्रतधारियों का ही परिवार है । इनके अतिरिक्त प्रभु के लाखों भक्त थे। गरणपर श्रमण भगवान् महावीर के धर्म-परिवार में नौ गण और ग्यारह गणधर थे जो इस प्रकार हैं-(१) इन्द्रभूति, (२) अग्निभूति, (३) वायुभूति (४) व्यक्त, (५) सुधर्मा, (६) मंडित, (७) मौर्यपुत्र, (८) प्रकम्पित, (६) अचलभ्राता, (१०) मेतार्य और (११) श्री प्रभास ।। ये सभी गृहस्थ-जीवन में विभिन्न क्षेत्रों के निवासी जातिमान् ब्राह्मण थे। मध्यम पावा के सोमिल ब्राह्मण का आमन्त्रण पाकर अपने-अपने छात्रों के साथ ये वहां के यज्ञ में आये हुए थे। केवलज्ञान प्राप्त हो जाने पर भगवान् भी पावापुरी पधारे और यज्ञस्थान के उत्तर भाग में विराजमान हुए । इन्द्रभूति प्रादि विद्वान् भी समवशरण की महिमा से आकर्षित हो भगवान की सेवा में पाये और अपनी-अपनी शंकामों का समाधान पाकर वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन अपने शिष्य-मंडल के साथ भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षित हुए। त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त कर इन्होंने चतुर्दश पूर्व की रचना की और गणधर कहलाये। उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १ समवायांग, समवाय ११। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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