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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् महावीर की प्रायु में दीप-महोत्सव के रूप में जनगण ने द्रव्योद्योत किया । उस दिन जब दीप जला कर प्रकाश किया गया तभी से दीपावली पर्व प्रारम्भ हुना, जो कार्तिक कृष्णा प्रमावस्या को प्रति वर्ष बड़ी धूम-धाम के साथ आज भी मनाया जाता है।'
भगवान महावीर की प्रायु श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष गृहवास में रहे । साधिकद्वादश वर्ष छद्मस्थ-पर्याय में साधना की और कुछ कम तीस वर्ष केवली रूप से विचरे। इस तरह सम्पूर्ण बयालीस वर्ष का संयम पाल कर बहत्तर वर्ष की पूर्ण प्राय में प्रभु मुक्त हुए । समवायांग में भी बहत्तर वर्ष का सब आयु भोग कर सिद्ध होने का उल्लेख है । छद्मस्थ पर्याय का कालमान स्थानांग में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है-बारह वर्ष और तेरह पक्ष छद्मस्थ पर्याय का पालन किया और १३ पक्ष कम ३० वर्ष केवली पर्याय में रहे । पूर्ण आयु सब में बहत्तर वर्ष मानी गई है।
भगवान् महावीर के चातुर्मास श्रमण भगवान् महावीर ने अस्थिग्राम में प्रथम चातुर्मास किया। चम्पा पौर पृष्ठ चम्पा में तीन (३) चातुर्मास किये । वैशाली नगरी और बाणिज्य ग्राम में प्रभु के बारह (१२) चातुर्मास हुए । राजगृह और उसके उपनगर नालंदा में चौदह (१४) चातुर्मास हुए । मिथिला नगरी में भगवान् ने छ (६) चातुर्मास" किये । भड्डिया नगरी में दो, आलंभिका और सावत्थी में एक एक चातुर्मास हुआ । वज्रभूमि (अनार्य) में एक चातुर्मास और पावापुरी में एक अंतिम इस प्रकार कुल बयालीस चातुर्मास किये।
भगवान् महावीर का धर्म-परिवार भगवान् महावीर ने चतुर्विध संघ में निम्नलिखित धर्म-परिवार था :-- गणधर एवं गण-गौतम इन्द्रभूति प्रादि ग्यारह (११) गणधर और
नव (९) गण १ (क) गते से भावुज्जोये दवज्जोयं करिस्सामो ॥ कल्प सू., सू० १२७ (शिवाना सं.) (ख) ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादराद्, प्रसिद्ध दीपावलिकात्र भारते ।
-त्रि०, १० १० १३ स० १४८ श्लो० (हरिवंश) (ग) एवं सुरगणपहामुज्जयं तस्सि दिणे सयलं महीमंडखं दळूण तहच्चेव कीरमाणे
जणवएण 'दीवोसवो' ति पासिदि गमो। च. म., पृ. ३३४ । २ समवायांग, समवाय ७२ ३ स्थानांग, ६ स्था० ३ ० ० ६९३ । दुवालस संवन्धरा तेरस पास घउमत्य० ॥
(अमोलक ऋषि द्वारा अनूषित, पृष्ठ ८१६)
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