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परिनिर्वाण]
भगवान् महावीर
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घट-घट के अन्तर्यामी प्रभ महाबीर ने अपने प्रमुख शिष्य गौतम की उस चिन्ता को समझ कर कहा- "गौतम ! तुम्हारा मेरे प्रति प्रगाढ़ स्नेह है। अनेक भवों से हम एक दूसरे के साथ रहे हैं । यहाँ से प्रायु पूर्ण कर हम दोनों एक ही स्थान पर पहुंचेंगे और फिर कभी एक दूसरे से विलग नहीं होंगे। मेरे प्रति तुम्हारा यह धर्मस्नेह ही तुम्हारे लिये केवलज्ञान की प्राप्ति को रोके हुए हैं। स्नेहराग के क्षीण होने पर तुम्हें केवलज्ञान की प्राप्ति अवश्य होगी।"
प्रभु का अन्तिम निर्णय सुनकर गौतम उस समय अत्यन्त प्रसन्न हुए थे।
भगवान के निर्वाण के समय समवसरण में उपस्थित गण-राजाओं ने भावभीने हृदय से कहा-"अहो ! आज संसार से वस्तुतः भाव उद्योत उठ गया, अब द्रव्य प्रकाश करेंगे।"
कार्तिक कृष्णा अमावस्या की जिस रात को श्रमण भगवान महावीर काल-धर्म को प्राप्त हुए, जन्म, जरा-मरण के सब बन्धनों को नष्ट कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए, उस समय चन्द्र नाम का संवत्सर, प्रीतिवर्द्धन नाम का मास और नन्दिवर्द्धन नाम का पक्ष था । दिन का नाम 'अग्निवेश्म' या 'उपशम' था। देवानन्दा रात्रि और अर्थ नाम का लव था। महर्त नाम का प्राण प्रौर सिद्ध नाम का स्तोक था । नागकरण और सर्वार्थसिद्ध महर्त में स्वाति-नक्षत्र के योग में जब भगवान् षष्ठ-भक्त के तप में पर्यकासन से विराजमान थे, सिद्ध बुद्ध-मुक्त हो गये।
देवादिकृत शरीर-किया भगवान् का निर्वाण हुमा जान कर स्वर्ग से शक प्रादि इन्द्र, सहस्रों देवदेवियाँ एवं स्थान-स्थान से नरेन्द्रादि सभी वर्गों के अपरिमेय जनौघ उद्वेलित समुद्र के समान पावापुरी में राजा हस्तिपाल की रज्जुग सभा की ओर उमड़ पड़े और अश्रुपूर्ण नयनों से भगवान् के पाथिव शरीर को शिविका में विराजमान कर चितास्थान पर ले गये । वहाँ देवनिर्मित गोशीर्ष चन्दन की चिता में प्रभु के शरीर को रखा गया। अग्निकुमार द्वारा अग्नि प्रज्वलित की गई और वायुकुमार ने वायु संचारित कर सुगन्धित पदार्थों के साथ प्रभु के शरीर की दाह-क्रिया सम्पन्न की। फिर मेघकुमार ने जल बरसा कर चिता शान्त की।
निर्वाणकाल में उपस्थित अठारह गरण-राजाओं ने अमावस्या के दिन .. पौषध, उपवास किया और प्रभु निर्वाणानन्तर भाव उद्योत के उठ जाने से महावीर के ज्ञान के प्रतीक रूप से संस्मरणार्थ द्रव्य-प्रकाश करने का निश्चय किया, चहुं ओर ग्राम-ग्राम, नगर-नगर और डगर-डगर में घर-घर दीप जला कर प्रभु द्वारा लोक में केवलज्ञान द्वारा किये गये अनिर्वचनीय उद्योत की स्मति
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