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उत्सर्पिणीकाल]
भगवान् महावीर
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इस चतुर्थ प्रारक का एक करोड़ पूर्व से कुछ अधिक समय बीत जाने पर कल्पवृक्ष उत्पन्न होंगे और तब यह भरतभूमि पुनः भोगभूमि बन जायगी।
उत्सपिणीकाल के सुषम और सुषमा-सुषम नामक क्रमश: पाँचवें और छठे आरों में अवसर्पिणी के प्रथम दो पारों के समान ही समस्त स्थिति रहेगी।
इस प्रकार अवसर्पिणी और उत्सपिणीकाल के छः-छः आरों को मिलाकर कुल बीस कोडाकोड़ी सागर का एक कालचक्र होता है।
गौतम गणधर ने भगवान से एक और प्रश्न किया-"भगवन ! आपके निर्वारण के पश्चात् मुख्य-मुख्य घटनाएँ क्या होंगी ?"
उत्तर में प्रभु ने फरमाया--"गौतम ! मेरे मोक्ष-गमन के तीन वर्ष साढ़े आठ मास पश्चात् दुःषम नामक पाँचवाँ पारा लगेगा। मेरे निर्वाण के चौसठ (६४) वर्ष पश्चात अन्तिम केवली जम्ब सिद्ध गति को प्राप्त होंगे। उसी समय मनःपर्यवज्ञान, परम अवधिज्ञान, पुलाकलब्धि, आहारक शरीर, क्षपकश्रेणी, उपशमश्रेणी, जिनकल्प, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यातचारित्र, केवलज्ञान और मुक्तिगमन इन बारह स्थानों का भरतक्षेत्र से विलोप हो जायगा।"
"मेरे निर्वाण के पश्चात् मेरे शासन में पचम आरे के अन्त तक २००४ युगप्रधान प्राचार्य होंगे । उनमें प्रथम प्रार्य सुधर्मा और अन्तिम दुःप्रसह होंगे।"
"मेरे निर्वाण के १७० वर्ष पश्चात् प्राचार्य भद्रबाहु के स्वर्गारोहण के अनन्तर अन्तिम चार वर्ष पूर्व, समचतुरस्र संस्थान, वज्रऋषभनाराच संहनन और महाप्राणध्यान इन चार चीजों का भरतक्षेत्र से उच्छेद हो जायगा।"
"मेरे निर्वाण के ५०० वर्ष पश्चात् प्राचार्य आर्य वज्र के समय में दसवाँ पूर्व और प्रथम संहनन-चतुष्क समाप्त हो जायेंगे।"
"मेरे मोक्षगमन के अनन्तर पालक, नन्द, चन्द्रगुप्त आदि राजाओं के अवसान के पश्चात्, अर्थात् मेरे निर्वाण के ४७० वर्ष बीत जाने पर विक्रमादित्य नामक राजा होगा । पालक का राज्यकाल ६० वर्ष, (नव) नन्दों का राज्यकाल १५५ वर्ष, मौर्यों का १०८ वर्ष, पूष्यमित्र का ३० वर्ष, बलमित्र व भानुमित्र का राज्यकाल ६० वर्ष, नरवाहन का ४० वर्ष, गर्दभिल्ल का १३ वर्ष, शक का राज्यकाल ४ वर्ष और उसके पश्चात विक्रमादित्य का शासन होगा । सज्जन और स्वर्णपुरुष विक्रमादित्य पृथ्वी का निष्कंटक राज्य कर अपना संवत् चलायेगा।"
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