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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ कालचक्र का वर्णन
चलने वाले श्रन्धड़ों व तूफानों के कारण धूमिल तथा अन्धकारपूर्ण रहेंगी । समय की रूक्षता के कारण चन्द्रमा अत्यधिक शीतलता प्रकट करेगा श्रौर सूर्य अत्यधिक उष्णता ।"
" तदनन्तर रसरहित - श्ररस मेघ, विपरीत रस वाले - विरस मेघ, क्षारमेघ, विष मेघ, अम्ल मेघ, अग्नि मेघ, विद्युत् मेघ, वज्र मेघ, विविध रोग एवं पीड़ाएँ बढ़ाने वाले मेघ प्रचण्ड हवानों से प्रेरित हो बड़ी तीव्र एवं तीक्ष्ण धाराओं से वर्षा करेंगे । इस प्रकार की तीव्र एवं प्रचुर अतिवृष्टियों के कारण भरतक्षेत्र के ग्राम, नगर, आगर, खेड़े, कव्वड़, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, समग्र जनपद, चतुष्पद, गौ आदि पशु, पक्षी, गाँवों और वनों के अनेक प्रकार के द्वीन्द्रियादिक त्रस प्राणी, वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, प्रवाल, अंकुर, तृणवनस्पति, बादर वनस्पति, सूक्ष्म वनस्पति, औषध और वैताढ्य पर्वत को छोड़कर सब पर्वत, गिरि, डूंगर टीबे, गंगा और सिन्धु को छोड़कर सब नदियाँ, भरने, विषम गड्ढे आदि विनष्ट हो जायेंगे । भूमि सम हो जायगी ।"
"उस समय समस्त भरतक्षेत्र की भूमि अंगारमय, चिनगारियों के समान, राख तुल्य, अग्नि से तपी हुई बालुका के समान तथा भीषरण ताप के कारण की ज्वाला के समान दाहक होगी । धूलि, रेणु, पंक एवं धसान वाले दलदलों के बाहुल्य के कारण पृथ्वी पर चलने वाले प्रारणी भूमि पर इधर-उधर बड़ी कठिनाई से चल-फिर सकेंगे ।"
छट्ठे मारक में मनुष्य अत्यन्त कुरूप, दुर्वर्ण, दुर्गन्धयुक्त, दुखद रस एवं स्पर्श वाले अनिष्ट, चिन्तन मात्र से दुखद, हीन - दीन, करकटु अत्यन्त कर्कश स्वर वाले, श्रनादेय-अशुभ भाषरण करने वाले, निर्लज्ज, झूठ-कपट- कलह, वधबन्ध और वैरपूर्ण जीवन वाले, मर्यादा का उल्लंघन करने में सदा प्रग्ररणी, कुकर्म करने के लिये सदा उद्यत, प्राज्ञापालन, विनयादि से रहित, विकलांग, बढ़े हुए रूक्ष नख, केश, दाढ़ी-मूछ व रोमावली वाले, काल के समान काले-कलूटे, फटी हुई दाड़िम के समान ऊबड़-खाबड़ सिर वाले, रूक्ष, पीले पके हुए बालों वाले, मांसपेशियों से रहित व चर्मरोगों के कारण विरूप, प्रथम प्रायु में ही बुढ़ापे से घिरे हुए, सिकुड़ी हुई सलदार चमड़ी वाले, उड़े हुए बाल और टूटे हुए दांतों के कारण घड़े के समान मुख वाले, विषम भांखों वाले, टेढ़ी नाक, भौंहें व प्रादि के कारण बीभत्स मुख वाले, सुजली कुष्ठ प्रादि के कारण उघड़ी हुई चमड़ी वाले, कसरे व खसरे के कारण तीले नखों से निरन्तर शरीर को खुजलाते रहने के कारण घावों से परिपूर्ण विकृत शरीर वाले, ऊबड़-खाबड़ प्रस्थिसंघियों एवं प्रसम अंगों के कारण विकृत प्राकृति वाले, दुर्बल, कुसंहनन, कुप्रमारण एवं हीन संस्थान के कारण प्रत्यन्त कुरूप, कुत्सित स्थान, शय्या और खानपान वाले, प्रशुचि के भण्डार, अनेक व्याधियों से पीड़ित, स्खलित विह्वल गति वाले,
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