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________________ ६८४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [कालचक्र पंचम प्रारक की राजनीति का दिग्दर्शन कराते हुए भगवान् ने कहा"गौतम ! जिस प्रकार छोटी मछलियों को मध्यम आकार-प्रकार की मछलियाँ और मध्यम स्थिति की मछलियों को वहदाकार वाली मछलियाँ खा जाती हैं, उसी प्रकार पंचम पारक में सर्वत्र 'मत्स्यन्याय' का बोलबाला होगा, राज्याधिकारी प्रजाजनों को लूटेंगे और राजा लोग राज्याधिकारियों को । उस समय सब प्रकार की व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो जायेंगी। सब देशों की स्थिति भीषण तूफान में फँसो नाव के समान डांवाडोल हो जायगी।" उस समय की सामाजिक स्थिति का वर्णन करते हुए प्रभु ने कहा"गौतम ! प्रजा को एक ओर तो चोर पीड़ित करेंगे और दूसरी ओर कमरतोड़ करों से राज्य । उस समय में व्यापारीगण प्रजा को दुष्ट ग्रह की तरह पीड़ित कर देंगे और अधिकारीगण बड़ी-बड़ी रिश्वतें लेकर प्रजाजनों का सर्वस्व हरण करेंगे । प्रात्मीयजनों में परस्पर सदा गृहकलह घर किये रहेगा। प्रजाजन एक दूसरे से द्वेष व शत्रुता का व्यवहार करेंगे । उनमें परोपकार, लज्जा, सत्यनिष्ठा और उदारता का लवलेश भी अवशेष नहीं रहेगा। शिष्य गुरुभक्ति को भूल कर अपने-अपने गुरुजनों की अवज्ञा करते हुए स्वच्छन्द विहार करेंगे और गुरुजन भी अपने शिष्यों को ज्ञानोपदेश देना बन्द कर देंगे और अन्ततोगत्वा एक दिन गुरुकुलव्यवस्था लुप्त ही हो जायगी। लोगों में धर्म के प्रति रुचि क्रमशः बिल्कुल मन्द हो जायगी। पुत्र अपने पिता का तिरस्कार करेंगे, बहुएँ अपनी सासों के सामने काली नागिनों की तरह हर समय फूत्कार करती रहेंगी और सासें भी अपनी बहुओं के लिये भैरवी के समान भयानक रूप धारण किये रहेंगी। कुलवधुओं में लज्जा का नितान्त अभाव होगा । वे हास-परिहास, विलास-कटाक्ष, वाचालता और वेश-भषा में वेश्यानों से भी बढ़ी-चढ़ी निकलेंगी। इस सबके परिणामस्वरूप उस समय किसी को साक्षात् देवदर्शन नहीं होगा।" ___उस समय की धार्मिक स्थिति का वर्णन करते हुए वीर प्रभु ने कहा"गौतम ! ज्यों-ज्यों पंचम पारे का काल व्यतीत होता जायगा, त्यों-त्यों साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध धर्मसंघ क्रमशः क्षीण होता जायगा। झूठ और कपट का सर्वत्र साम्राज्य होगा। धर्म-कार्यों में भी कूटनीति, कपट और दुष्टता का बोलबाला होगा । दुष्ट और दुर्जन लोग आनन्दपूर्वक यथेच्छ विचरण करेंगे पर सज्जन पुरुषों का जीना भी दूभर हो जायगा।" पंचम आरक में सर्वतोमुखी ह्रास का दिग्दर्शन कराते हुए भगवान् ने कहा-“गौतम ! पंचम पारे में रत्न, मणि, माणिक्य, धन-सम्पत्ति, मंत्र, तंत्र, औषधि, ज्ञान, विज्ञान, प्रायष्य, पत्र, पुष्प, फल, रस, रूप-सौन्दर्य, बल-वीर्य, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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