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का वर्णन] भगवान् महावीर
६८१ सुषमा नामक दूसरा प्रारक तीन कोडाकोड़ी सागर का होता है। इसमें प्रथम भारक की अपेक्षा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्याय की अनन्त गुनी हीनता हो जाती है। इस प्रारक के मानव की प्रायु दो पल्योपम, देहमान दो कोस और पसलियाँ १२८ होती हैं । दो दिन के अन्तर से उनको प्रहार ग्रहण करने की आवश्यकता प्रतीत होती है । इस प्रारक में पृथ्वी का स्वाद घटकर शक्कर तुल्य हो जाता है।
इस दूसरे प्रारक में भी मानव की सभी इच्छाएं उपर्युक्त १० प्रकार के कल्पवृक्षों द्वारा पूर्ण की जाती हैं, अतः उन्हें किसी प्रकार के श्रम की आवश्यकता नहीं होती। जिस समय युगल दम्पति की आयु छ महीने अवशेष रह जाती है, उस समय युगलिनी, पुत्र-पुत्री के एक युगल को जन्म देती है । मातापिता द्वारा ६४ दिन तक प्रतिपालित होने के बाद ही नवयुगल, दम्पति के रूप में सुखपूर्वक यथेच्छ विचरण करने लग जाता है।
दूसरे बारे में मनुष्य चार प्रकार के होते हैं । यथा : (१) एका
(२) प्रचुरजंघा (३) कुसुमा
(४) सुशमना आयु की समाप्ति के समय इस प्रारक के युगल को भी छींक एवं उबासी आती है और वह युगल दम्पति एक साथ काल कर देवगति में उत्पन्न होता है ।
सुषमा-दुषम नामक तीसरा पारा दो कोड़ाकोड़ी सागर के काल प्रमाण का होता है । इस तृतीय प्रारक के प्रथम और मध्यम विभाग में दूसरे प्रारक की अपेक्षा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अनन्तगुनी अपकर्षता हो जाती है। इस आरे के मानव वज्रऋषभनाराच संहनन, समचतुरस्र संस्थान, २००० धनुष की ऊँचाई, एक पल्योपम की आयु और ६४ पसलियों वाले होते हैं। उस समय के मनुष्यों को एक दिन के अन्तर से प्रहार ग्रहण करने की इच्छा होती है । उस समय पृथ्वी का स्वाद गुड़ के समान होता है। मृत्यु से ६ मास पूर्व युगलिनी एक पुत्र तथा एक पुत्री को युगल के रूप में जन्म देती है। उन बच्चों का ७६ दिन तक माता-पिता द्वारा पालन-पोषण किया जाता है। तत्पश्चात् वे पूर्ण यौवन को प्राप्त हो दम्पति के रूप में स्वतन्त्र और स्वेच्छापूर्वक आनन्दमय जीवन बिताते हैं। उनके जीवन की समस्त आवश्यकताएं दश प्रकार के कल्पवृक्षों द्वारा पूर्ण कर दी जाती हैं । अपने जीवन-निर्वाह के लिये उन्हें किसी प्रकार का कार्य अथवा श्रम नहीं करना पड़ता, अतः वह युग भोगयग कहलाता है। अंत समय में युगल स्त्री-पुरुष को एक साथ एक को छींक और दूसरे को उबासी आती है और उसी समय वे एक साथ आयुष्य पूर्ण कर देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होते हैं।
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