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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ पुण्यपाल के स्वप्नों का फल
अपने पाँचवें स्वप्न में राजा पुण्यपाल ने जो सिंह को विपन्नावस्था में देखा, उसका फल बताते हुए भगवान् महावीर ने कहा - " भविष्य में सिंह के समान तेजस्वी वीतराग - प्ररूपित जैन धर्म निर्बल होगा, धर्म की प्रतिष्ठा से विमुख हो लोग हीन सत्व, साधारण श्वानादि पशुओं के समान मिथ्या मतावलम्बी साधु वेषधारियों की प्रतिष्ठा करने में तत्पर रहेंगे। आगे चलकर जैन धर्म के स्थान पर विविध मिथ्या धर्मों का प्रचार-प्रसार एवं सम्मान अधिक होगा ।"
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छठे स्वप्न में कमलदर्शन का फल बताते हुए प्रभु ने कहा - "समय के प्रभाव से आगामी काल में सुकुलीन व्यक्ति भी कुसंगति में पड़ कर धर्ममार्ग से विमुख हो पापाचार में प्रवृत्त होंगे ।"
राजा पुण्यपाल के सातवें स्वप्न का फल सुनाते हुए भगवान् ने फरमाया" राजन् ! तुम्हारा बीज-दर्शन का स्वप्न इस भविष्य का सूचक है कि जिस प्रकार एक अविवेकी किसान अच्छे बीज को ऊसर भूमि में और घुन से बींदे हुए खराब बीज को उपजाऊ भूमि में बो देता है, उसी प्रकार गृहस्थ श्रमणोपासक आगामी काल में सुपात्र को छोड़ कर कुपात्र को दान करेंगे ।"
भगवान् महावीर ने राजा पुण्यपाल के आठवें व अन्तिम स्वप्न का फल सुनाते हुए फरमाया-'पुण्यपाल ! तुमने अपने अन्तिम स्वप्न में कुंभ देखा है, वह इस आशय का द्योतक है कि भविष्य में तप, त्याग एवं क्षमा यादि गुणसम्पन्न, आचारनिष्ठ महामुनि विरले ही होंगे । इसके विपरीत शिथिलाचारी, वेषधारी, नाममात्र के साधुओंों का बाहुल्य होगा । शिथिलाचारी साधु निर्मल चारित्र वाले साधुओं से द्वेष रखते हुए सदा कलह करने के लिये उद्यत रहेंगे । ग्रह - ग्रस्त की तरह प्रायः सभी गृहस्थ तत्त्वदर्शी साधुओं और वेशधारी साधुनों के भेद से अनभिज्ञ, दोनों को समान समझते हुए व्यवहार करेंगे ।"
भगवान् महावीर के मुखारविन्द से अपने स्वप्नों के फल के रूप में भावी विषम स्थिति को सुनकर राजा पुण्यपाल को संसार से विरक्ति हो गई । उसने तत्काल राज्यलक्ष्मी और समस्त वैभव को ठुकरा कर भगवान् की चरण-शरण में श्रमण-धर्म स्वीकार कर लिया और तप-संयम की सम्यक् रूप से आराधना कर वह कालान्तर में समस्त कर्म - बन्धनों से विनिर्मुक्त हो निर्वाण को प्राप्त हुआ ।
कालचक्र का वर्णन
कुछ काल पश्चात् भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम ने प्रभु चरण कमलों में सिर झुकाकर कालचक्र की पूर्ण जानकारी के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासा अभिव्यक्त की ।
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