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पुण्यपाल के स्वप्नों का फल]
भगवान् महावीर
प्रभु के उपदेशामत का पान करने के पश्चात् राजा पुण्यपाल को सविधि बन्दन कर पूछा-"प्रभो ! गत रात्रि के अवसानकाल में मैंने हानी, बन्दर, क्षीरदु, (क्षीरतरु), कौमा, सिंह, पप, बीज और कुभ ये आठ अशुभ स्वप्न देखे हैं। करुणाकर ! मैं बड़ा चिन्तित है कि कहीं यं स्वप्न किसी मावी अमंगल के सूचक तो नहीं हैं।"
भगवान महावीर ने पुण्यपाल के स्वप्नों का फल सुनाते हए कहा"राजन् ! प्रथम स्वप्न में जो तुमने हाथी देखा है, वह इस भावी का सूचक है कि अब भविष्य के विवेकशील श्रमणोपासक भी क्षणिक समृद्धिसम्पन्न गृहस्थ जीवन में हाथी की तरह मदोन्मत्त होकर रहेंगे। भयंकर से भयंकर संकटापन्न स्थिति अथवा पराधीनता की स्थिति में भी वे प्रव्रजित होने का विचार तक भी मन में नहीं लायेगे। जो गृह त्याग कर संयम ग्रहण करेंगे, उनमें से भी अनेक कुसंगति में फंसकर या तो संयम का परित्याग कर देंगे या अच्छी तरह संयम का पालन नहीं करेंगे । विरले ही संयम का दृढ़ता से पालन कर सकेंगे।"
दूसरे स्वप्न में कपि-दर्शन का फल बताते हुए प्रभु ने कहा-"स्वप्न में जो तुमने बन्दर देखा है, वह इस अनिष्ट का सूचक है कि.भविष्य में बड़े-बड़े संधपति आचार्य भी बन्दर की तरह चंचल प्रकृति के, स्वल्पपराक्रमी और व्रताचरण में प्रमादी होंगे। जो प्राचार्य या साधु विशुद्ध, निर्दोष संयम एवं व्रतों का पालन करेंगे तथा वास्तविक धर्म का उपदेश करेंगे, उनको अधिकांश दुराचाररत लोगों द्वारा यत्र-तत्र खिल्ली उड़ाई जा कर धर्मशास्त्रों की उपेक्षा ही नहीं, अपितु घोर अवज्ञा भी की जायगी। इस प्रकार भविष्य में अधिकांश लोग बन्दर के समान अविचारकारी, विवेकशून्य और अतीव अस्थिर एवं चंचल स्वभाव वाले होंगे।"
तीसरे स्वप्न में क्षीरतरु (अश्वत्थ) देखने का फल बताते हुए प्रभु ने कहा-"राजन् ! कालस्वभाव से अब आगामी काल में क्षुद्र भाव से दान देने वाले श्रावकों को साधु नामधारी पाखण्डी लोग घेरे रहेंगे। पाखण्डियों की प्रवंचना में फंसे हुए दानी सिंह के समान आचारनिष्ठ साधुओं को शृगालों की तरह शिथिलाचारी और शृगालवत् शिथिलाचारी साधुओं को सिंह के समान आचारनिष्ठ समझेगे। यत्र-तत्र कण्टकाकीर्ण बबूल वक्ष की तरह पाखण्डियों का पृथ्वी पर बाहुल्य होगा।" ___चौथे स्वप्न में काक-दर्शन का फल बताते हुए प्रभु ने फरमाया"भविष्य में अधिकांश साधु अनुशासन का उल्लंघन एवं साधु-मर्यादामों का परित्याग कर कौवे की तरह विभिन्न पाखण्ड पूर्ण पंथों का पाश्रय ले मत परिवर्तन करते रहेंगे । वे लोग कौवे के 'कांव-कांव' शब्द की तरह वितण्डावाद करते हुए सद्धर्म के उपदेशकों का खण्डन करने में ही सदा तत्पर रहेंगे।"
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