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________________ उनतीसा वर्ष] भगवान् महावीर ६७५ उसको रेवती ने दो-तीन बार उन्मादपूर्ण वचन कहे, इससे रुष्ट होकर उसने रेवती को प्रथम नरक में उत्पन्न होने का अप्रिय वचन कहा है । अतः तुम जाकर महाशतक को सूचित करो कि भक्त प्रत्याख्यानी उपासक को सद्भूत भी ऐसे वचन कहना नहीं कल्पता । इसके लिए उसको पालोचना करनी चाहिये ।" प्रभु के प्रादेशानुसार गौतम ने जाकर महाशतक से यथावत् कहा और उसने विनयपूर्वक प्रभु-वाणी को सुनकर आलोचना के द्वारा प्रात्मशुद्धि की।' महावीर ने गौतम के पूछने पर 'वैभार गिरि' के 'महा-तपस्तीर प्रभव' जलस्रोत-कुण्ड की भी चर्चा की। उन्होंने कहा-"उसमें उष्ण योनि के जीव जन्मते और मरते रहते हैं तथा उष्ण स्वभाव के जल पुद्गल भी आते रहते हैं, यही जल की उष्णता का कारण है।"२ फिर भगवान ने बताया कि एक जीव एक समय में एक ही प्रायु का भोग करता है । ऐहिक प्रायु-भोग के समय परभव की प्राय नहीं भोगता और परभव की प्राय के भोगकाल में वह इह भव की प्राय नहीं भोगता । इहभविक या परभविक' दोनों आयु सत्ता में रह सकती हैं।" "सुख-दुःख बताये क्यों नहीं जा सकते"-अन्य तीथिकों की इस शंका के समाधानार्थ भगवान् ने कहा-"केवल राजगह के ही नहीं, अपितु समस्त संसार के सूख-दुःखों को भी यदि एकत्र करके कोई बताना चाहे तो सूक्ष्म प्रमाण से भी नहीं बता सकता।" प्रसंग को सरलता से समझाने के लिए प्रभु ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया-"जैसे कोई शक्तिशाली देव सुगंध का एक डिब्बा लेकर जम्बद्वीप के चारों प्रोर चक्कर काटता हुआ चारों दिशामों में सुगन्धि बिखेर दे, तो वे गन्ध के पुद्गल जम्बूद्वीप में फैल जायेंगे, किन्तु यदि कोई उन गन्ध-पुद्गलों को फिर से एकत्र कर दिखाना चाहे तो एक लीख के प्रमाण में भी उनको एकत्र कर नहीं दिखा सकता । ऐसे ही सुख-दुःख के लिए भी समझना चाहिये ।" इस प्रकार अनेक प्रश्नों का प्रभु ने समाधान किया। __भगवान् के प्रमुख शिष्य अग्निभूति और वायभूति नाम के दो गणधरों ने इसी वर्ष राजगृह में अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया। भगवान् का यह चौतुमांस भी राजगृह में ही पूर्ण हुआ। Aarada १ उपासक०, भ० ८, सू. २५७, २६१ । २ भग० २।५ सू० ११३ । ३ भग० ५।३ सूत्र १८३ । ४ भग• ६६ सूत्र २५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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