________________
६७२
जैन धर्म का मौलिक इतिहास [कालोदायी के प्रश्न वाला स्वाद में लुब्ध हो तज्जन्य हानि को भूल जाता है किन्तु परिणाम उसका दुखदायी होता है । भक्षक के शरीर पर कालान्तर में उसका बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार जब जीव हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ और राग-द्वेष आदि पापों का सेवन करता है, तब तत्काल ये कार्य सरल व मनोहर प्रतीत होने के कारण अच्छे लगते हैं, परन्तु इनके विपाक परिरणाम बड़े अनिष्टकारक होते हैं, जो करने वालों को भोगने पड़ते हैं।"
कालोदायी ने फिर शुभ कर्मों के विषय में पूछा-"भगवन् ! जीव शुभ कर्मों को कैसे करता है ?"
भेगवान् महावीर ने कहा- "जैसे औषधिमिश्रित भोजन तीखा और कड़वा होने से खाने में रुचिकर नहीं लगता, तथापि बलवीर्य-वर्द्धक जान कर बिना मन भी खाया एवं खिलाया जाता है और वह लाभदायक होता है। उसी प्रकार अहिंसा, सत्य, शील, क्षमा और अलोभ आदि शुभ कर्मों की प्रवत्तियाँ मन को मनोहर नहीं लगती, प्रारम्भ में वे भारी लगती हैं । वे दूसरे की प्रेरणा से प्रायः बिना मन, की जाती हैं, परन्तु उनका परिणाम सुखदायी होता है।"
कालोदायी ने दूसरा प्रश्न हिंसा के विषय में पूछा-"भगवन् ! समान उपकरण वाले दो पुरुषों में से एक अग्नि को जलाता है और दूसरा बझाता है तो इन जलाने और बुझाने वालों में अधिक प्रारम्भ और पाप का भागी कौन होता है ?"
भगवान् ने कहा-कालोदायी ! आग बुझाने वाला अग्नि का आरम्भ तो अधिक करता है, परन्तु पृथ्वी, जल, वाय, वनस्पति और त्रस की हिंसा कम करता है, होने वाली हिंसा को घटाता है। इसके विपरीत जलाने वाला पृथ्वी, जल, वायु वनस्पति और त्रस की हिंसा अधिक और अग्नि की कम करता है। प्रतः प्राग जलाने वाला अधिक प्रारम्भ करता है और बुझाने वाला कम । अतः आग जलाने वाले से बुझाने वाला अल्पपापी कहा गया है ।"२
मचित्त पुद्गलों का प्रकाश फिर कालोदायी ने अचित्त पुद्गलों के प्रकाश के विषय में पूछा तो प्रभु ने कहा-"प्रचित्त पुद्गल भी प्रकाश करते हैं । जब कोई तेजोलेश्याधारी मुनि तेजोलेश्या छोड़ता है, तब वे पुद्गल दूर-दूर तक गिरते हैं, वे दूर और समीप प्रकाश फैलाते हैं । पुद्गलों के प्रचित्त होते हुए भी प्रयोक्ता हिंसा करने वाला
१ भग०, श०७, उ० १०, सू० ३०६ । २ भग० सू०, ७।१०, सू०.३०७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org