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________________ उदक पेढ़ाल और गौतम] भगवान् महावीर ___ गौतम स्वामी और उदक-पेढाल के बीच विचार-चर्चा चल रही थी कि उसी समय पापित्य अन्य स्थविर भी वहाँ आ पहुँचे । उन्हें देख कर गौतम ने कहा- “उदक ! ये पापित्य स्थविर आये हैं, लो इन्हीं से पूछ लें।" ___ गौतम ने स्थविरों से पूछा- "स्थविरो! कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनको जीवनपर्यन्त अनगार-साधु नहीं मारने की प्रतिज्ञा है। कभी कोई वर्तमान साधु पर्याय में वर्षों रह कर फिर गहवास में चला जाय और किसी अपरिहार्य कारण से वह साधु की हिंसा त्यागने वाला गृहस्थ उसकी हिंसा कर डाले तो उसे साधु की हिंसा का पाप लगेगा क्या?" स्थविरों ने कहा-"नहीं, इससे प्रतिज्ञा का पंग नहीं होता।" गौतम ने कहा-"निर्ग्रन्थो! इसी प्रकार त्रसकाय की हिंसा का त्यागी गृहस्थ भी स्थावर की हिंसा करता हुआ अपने पच्चखाण का भंग नहीं करता।" इस प्रकार अन्य भी अनेक दृष्टान्तों से गौतम ने उदक-पेढ़ाल मुनि की शंका का निराकरण किया और समझाया कि त्रस मिट कर सब स्थावर हो जायँ या स्थावर सब के सब त्रस हो जायँ, यह संभव नहीं । __ गौतम के युक्तिपूर्ण उत्तर और हित-वचनों से मुनि उदक ने समाधान पाया और सरलभाव से बिना वन्दन के ही जाने लगा तो गौतम ने कहा"आयुष्मन् उदक ! तुम जानते हो, किसी भी श्रमण-माहरण से एक भी आर्यधर्म युक्त वचन सुन कर उससे ज्ञान पाने वाला मनुष्य देव की तरह उसका सत्कार करता है।" गौतम की इस प्रेरणा से उदक समझ गया और बोला-“गौतम महाराज ! मुझे पहले इसका ज्ञान नहीं था, अतः उस पर विश्वास नहीं हुआ। अब आपसे सुनकर मैंने इसको समझा है, मैं उस पर श्रद्धा करता है।" गौतम द्वारा प्रेरित हो निर्ग्रन्थ उदक ने पूर्ण श्रद्धा व्यक्त की और भगवान् के चरणों में जाकर विनयपूर्वक चातुर्याम परम्परा से पंच महाव्रत रूप धर्मपरम्परा स्वीकार की। अब ये भगवान् महावीर के श्रमण संघ में सम्मिलित हो गये ।' इधर-उधर कई क्षेत्रों में विचरण करने के पश्चात् प्रभु ने इस वर्ष का चातुर्मास भी नालन्दा में व्यतीत किया। १ सूत्र कृ० २१७ नालंदीय, ८१ सूः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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