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________________ ६६३ केवलीचर्या का इक्कीसवाँ वर्ष] भगवान् महावीर तदनन्तर अन्यान्य स्थानों में विहार करते हुए भगवान् वैशाली पधारे और वहाँ पर दूसरा चातुर्मास व्यतीत किया। केवलीचर्या का इक्कीसवाँ वर्ष वर्षाकाल पूर्ण कर भगवान् ने वैशाली से मगध की ओर प्रस्थान किया। वे अनेक क्षेत्रों में धर्मोपदेश करते हुए राजगृह पधारे और गुणशील उपवन में विराजमान हुए। गणशील उद्यान के पास अन्यतीर्थ के बहुत से साधु रहते थे। उनमें समय-समय पर कई प्रकार के प्रश्नोत्तर होते रहते थे । अधिकांशतः वे स्वमत का मंडन और परमत का खण्डन किया करते। गौतम ने उनकी कुछ बातें सुनी तो उन्होंने भगवान् के सामने जिज्ञासाएं प्रस्तुत कर शंकाओं का समाधान प्राप्त किया। भगवान ने, श्रुतसम्पन्न और शीलसम्पन्न में कौन श्रेष्ठ है, यह बतलाया और जीव तथा जीवात्मा को भिन्न मानने की लोक-मान्यता का भी विरोध किया। उन्होंने कहा-“जीव और जीवात्मा भिन्न नहीं, एक ही हैं।" एक दिन तैथिकों में पंचास्तिकाय के विषय में भी चर्चा चली। वे इस पर तर्क-वितर्क कर रहे थे। उस समय भगवान् के प्रागमन की बात सुनकर राजगृह का श्रद्धाशील श्रावक 'मद्दुक' भी तापसाश्रम के पास से प्रभु-वन्दन के लिये जा रहा था। कालोदायी आदि तैथिक, जो पंचास्तिकाय के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे, मददुक श्रावक को जाते देखकर आपस में बोले-"अहो अर्हद्भक्त मद्दुक इधर से जा रहा है। वह महावीर के सिद्धान्त का अच्छा ज्ञाता है। क्यों नहीं प्रस्तुत विषय पर उसकी भी राय ले ली जाय ।" ऐसा सोचकर वे लोग पास आये और मदुक को रोककर बोले"मद्दुक ! तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर पंच अस्तिकायों का प्रतिपादन करते हैं। उनमें एक को जीव और चार को अजीव तथा एक को रूपी और पाँच को प्ररूपी बतलाते हैं। इस विषय में तुम्हारी क्या राय है तथा अस्तिकायों के विषय में तुम्हारे पास क्या प्रमाण हैं ?" ___उत्तर देते हुए मद्दुक ने कहा-“अस्तिकाय अपने-अपने कार्य से जाने जाते हैं । संसार में कुछ पदार्थ दृश्य और कुछ अदृश्य होते हैं जो अनुभव, अनुमान एवं कार्य से जाने जाते हैं। ___ तीथिक बोले-“मद्दुक ! तू कैसा श्रमणोपासक है, जो अपने धर्माचार्य के कहे हुए द्रव्यों को जानता-देखता नहीं, फिर उनको मानता कैसे है ?" ... मद्दुक ने कहा-"तीथिको ! हवा चलती है, तुम उसका रंग रूप देखते हो?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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