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________________ केवलीचर्या का उन्नीसवी वर्ष] भगवान् महावीर ६६१ नगरों को पावन करते हुए पांचाल की पोर पधारे और कपिलपुर के बाहर सहस्राम्रवन में विराजमान हुए। कम्पिलपुर में अम्बड़ नाम का एक ब्राह्मण परिव्राजक अपने सात सौ शिष्यों के साथ रहता था। जब उसने महावीर के त्याग-तपोमय जीवन को देखा और वीतरागतामय निर्दोष प्रवचन सुने, तो वह शिष्य-मंडली सहित जैनधर्म का उपासक बन गया। परिव्राजक सम्प्रदाय की वेष-भूषा रखते हुए भी उसने जैन देश-विरति धर्म का अच्छी तरह पालन किया। एक दिन भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए गौतम ने अम्बड़ के लिये सुना कि अम्बड़ संन्यासी कम्पिलपुर में एक साथ सौ घरों में माहार ग्रहण करता और सौ ही घरों में दिखाई देता है। गौतम ने जिज्ञासापूर्ण स्वर में विनयपूर्वक भगवान् से पूछा-"भगवन् ! अम्बड़ के विषय में लोग कहते है कि वह एक साथ सौ घरों में प्राहार ग्रहण करता है। क्या यह सच है ?" प्रभु ने उत्तर में कहा-"गौतम ! अम्बड़ परिव्राजक विनीत और प्रकृति का भद्र है। निरन्तर छ? तप-बेले-बेले की तपस्या के साथ प्रातापना करते हुए उसको शुभ-परिणामों से वीर्यलब्धि और वैक्रियलब्धि के साथ अवधिज्ञान भी प्राप्त हुआ है। अतः लब्धिबल से वह सौ रूप बना कर सौ घरों में दिखाई देता और सो घरों में आहार ग्रहण करता है, यह ठीक है।" "गौतम ने पूछा-"प्रभो! क्या वह आपकी सेवा में श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण करेगा?" प्रभु ने उत्तर में कहा-"गौतम! अम्बड़ जीवाजीव का ज्ञाता श्रमणोपासक है। वह उपासक जीवन में ही आयु पूर्ण करेगा। श्रमणधर्म ग्रहण नहीं करेगा।" अम्बड़ की चर्या भगवान् ने अम्बड़ की चर्या के सम्बन्ध में कहा-"गौतम ! यह अम्बड़ स्थूल हिंसा, झूठ और अदत्तादान का त्यागी, सर्वथा ब्रह्मचारी और संतोषी होकर विचरता है। वह यात्रा में चलते हुए मार्ग में पाए पानी को छोड़कर अन्यत्र किसी नदी, कूप या तालाब प्रादि में नहीं उतरता। रथ, गाड़ी, पालकी आदि यान अथवा हाथी, घोड़ा आदि वाहनों पर भी नहीं बैठता। मात्र चरणयात्रा करता है। खेल, तमाशे, नाटक आदि नहीं देखता और न राजकथा, देशकथा आदि कोई विकथा ही करता है। वह हरी वनस्पति का छेदन-भेदन और स्पर्श भी नहीं करता । पात्र में तुम्बा, काष्ठ-पात्र और मृत्तिका-भाजन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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