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________________ मिलन] भगवान् महावीर ६५३ बहे जा रहे हैं, उनके लिए आप शरण गति और प्रतिष्ठा रूप द्वीप किसे मानते हैं ?" गौतम ने कहा-"महामुने ! उस पानी में एक बहुत बड़ा द्वीप है, जिस पर पानी नहीं पहुँच पाता। इसी प्रकार संसार के जरा-मरण के वेग में बहते हुए जीवों के लिए धर्म रक्षक होने से द्वीप का काम करता है। यही शरण, गति और प्रतिष्ठा है।" (१०) केशी बोले-“गौतम ! बड़े प्रवाह वाले समुद्र में नाव उत्पथ पर जा रही है, उस पर आरूढ़ होकर आप कैसे पार जा सकेंगे?" . ___ गौतम ने कहा-"केशी महाराज ! नौका दो तरह की होती है : (१) सच्छिद्र और (२) छिद्ररहित । जो नौका छिद्र वाली है वह पार नहीं करती, किन्तु छिद्र रहित नौका पार पहुँचाती है । आप कहेंगे कि संसार में नाव क्या है, तो उत्तर है-शरीर नौका और जीव नाविक है । आस्रवरहित शरीर से महर्षि संसार-समुद्र को पार कर लेते हैं ?" (११) फिर केशिकुमार ने पूछा--"गौतम ! संसार के बहुत से प्राणी घोर अंधकार में भटक रहे हैं, लोक में इन सब प्राणियों को प्रकाश देने वाला कौन है ?" गौतम ने कहा-"लोक में विमल प्रकाश करने वाले सूर्य का उदय हो गया है, जो सब जीवों को प्रकाश-दान करेगा । सर्वज्ञ जिनेश्वर ही वह भास्कर है, जो तमसावृत संसार को ज्ञान का प्रकाश दे सकते हैं।" . (१२) तदनन्तर केशी ने सुख-स्थान की पृच्छा करते हुए प्रश्न किया"संसार के प्राणी शारीरिक और मानसिक आदि विविध दुःखों से पीड़ित हैं, उनके लिये निर्भय, उपद्रवरहित और शान्तिदायक स्थान कौनसा है ?" इस पर गौतम ने कहा--"लोक के अग्रभाग पर एक निश्चल स्थान है, जहाँ जन्म, जरा, मृत्यु, व्याधि और पीड़ा नहीं होती। वह स्थान सबको सुलभ नही है । उस स्थान को निर्वाण, सिद्धि, क्षेम एवं शिवस्थान आदि नाम से कहते हैं। उस शाश्वत स्थान को प्राप्त करने वाले मुनि चिन्ता से मुक्त हो जाते हैं।" इस प्रकार गौतम द्वारा अपने प्रत्येक प्रश्न का समुचित समाधान पाकर केशिकुमार बड़े प्रसन्न हुए और गौतम को श्रुतसागर एवं संशयातीत कह, उनका अभिवादन करने लगे। फिर सत्यप्रेमी और गुणग्राही होने से घोर पराक्रमी केशी ने शिर नवा कर गौतम के पास पंच-महाव्रत रूप धर्म स्वीकार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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